अक्सर आपने फिल्मों या असल जिन्दगी में वकिलों और जजों को हमेशा काला कोट में ही देखा होगा। लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि आखिर बकिल काला कोट के अलावा किसी और पोसाक को क्यों नही पहनते है। आपको बता दे कि बकिल द्वारा पहनने वाला काला कोट कोई फैशन नही है। बल्कि इसके पिछे एक ऐतिहासिक वजह है। तो चलिए जानते है इसके बारे में। साल 1994 में ब्रिटेन की महारानी क्वीन मैरी की मृत्यु चेचक से हो गई थी।
कब और क्यों शुरू हुई काला कोट और सफेद शर्ट पहनने की परंपरा
जिसके बाद उनके पति राजा विलियम्स ने सभी जजों और वकीलों को सार्वजनिक रुप से शोक मनाने के लिए काले गाउन पहनकर इकट्ठा होने का आदेश दिया था। यह आदेश कभी भी रद्द नहीं हुआ और तब से लेकर आज तक यह प्रथा चली आ रही है कि वकील काला गाउन पहनते हैं। बता दे कि बकालत की शुरूआत साल 1327 में एडवर्ड तृतीय ने की थी। उस समय ड्रेस कोड के अधार पर न्याधीशों की वेशभूषा तैयार की गई थी। जज अपने सर पर एक बालों वाली विग पहनते थे। वकालत के शुरुआती समय में वकीलों को चार भागों में विभाजित किया गया था। जोकि इस प्रकार थे।
शुरुआती समय में कैसे होती थी वकालत
स्टूडेंट यानी छात्र, प्लीडर यानी वकील, बेंचर और बैरिस्टर ये सभी जज का स्वागत करते थे। हलांकि उस समय अदालत में सुनहरे लाल कपड़े और भूरे रंग से बना हुआ एक गाउन पहना जाता था, बाद में साल 1600 में वकीलों की वेशभूषा में बदलाव आया और साल 1637 में यह प्रस्ताव रखा गया कि काउंसिल को जनता के अनुरूप ही कपड़े पहनने चाहिए, जिसके बाद वकीलों ने लंबे गाउन पहनने शुरू कर दिए, माना जाता है उस समय कि इस तरह की वेशभूषा न्यायाधीशों और वकीलों को अन्य आम व्यक्तियों से अलग बनाती थी।
काला कोट और सफेद शर्ट वकीलों में लाता है अनुशासन
लेकिन आज के समय में काला कोट वकीलों की पहचान बन गया है। अधिनियम 1961 के तहत अदालतों में सफेद बैंड टाई के साथ काला कोट पहन कर आना अनिवार्य किया गया है । माना जाता है कि काला कोट और सफेद शर्ट वकीलों में अनुशासन लाता है और उनमें न्याय के प्रति विश्वास को कायम रखता है।