रूस-यूक्रेन युद्ध ने न केवल अंतरराष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित किया है, बल्कि इसने कई भारतीय युवाओं को भी एक कठिन स्थिति में डाल दिया है। यह कहानी उन भारतीयों की है जिन्होंने रूस का रुख किया और रूसी सेना में शामिल हो गए, और अब वे वापसी की राह देख रहे हैं।
भारतीयों के रूस जाने की वजह
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध ने रूस को भारी नुकसान पहुंचाया है। युद्ध की शुरुआत में व्लादिमीर पुतिन को विश्वास था कि यह युद्ध कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाएगा। लेकिन जैसे-जैसे युद्ध खिंचता गया, रूसी सेना को अधिक युवाओं की आवश्यकता पड़ी। इस स्थिति का फायदा उठाते हुए, कई एजेंट्स ने भारतीय युवाओं को आकर्षक प्रस्ताव देकर रूस भेज दिया। भारत और दुबई में मौजूद इन एजेंट्स ने गरीब और बेरोजगार युवाओं को पैसों और बेहतर जीवन का सपना दिखाया।
एजेंट्स ने किया गुमराह

AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने खुलासा किया कि एजेंट्स ने भारतीय युवाओं को 1.5 लाख रुपये की मासिक सैलरी, रूस में रहने के लिए घर, और बिजनेस सेटअप के लिए लोन का लालच दिया। ये प्रस्ताव सुनने में बहुत आकर्षक थे, खासकर उन युवाओं के लिए जो गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहे थे। एजेंट्स ने अविवाहित युवाओं को प्राथमिकता दी, क्योंकि उन्हें लगता था कि वे अपने परिवार की जिम्मेदारियों से मुक्त हैं और आसानी से विदेश जाने को तैयार हो जाएंगे।
रूस में कैसे फंसे भारतीय?
एजेंट्स के बहकावे में आकर कई भारतीय युवाओं ने रूस जाने का निर्णय लिया और रूसी सेना के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिया। उन्हें लगा कि यह अवसर उनकी जिंदगी को बदल देगा और युद्ध समाप्त होने के बाद वे ढेर सारे पैसों के साथ भारत वापस लौट आएंगे। लेकिन उनकी उम्मीदें तब टूट गईं जब युद्ध ने खत्म होने का नाम नहीं लिया और उन्हें वह पैसा भी नहीं मिला जिसका वादा किया गया था। उनके कॉन्ट्रैक्ट रद्द नहीं हो सकते थे क्योंकि युद्ध जारी था, इसलिए वे रूसी सेना में रहना उनकी मजबूरी बन गई।
भारतीयों से संपर्क नहीं कर सकी सरकार

भारत सरकार ने रूसी सेना में शामिल भारतीयों से संपर्क करने की कई कोशिशें की, लेकिन युद्धस्थल पर होने के कारण उनसे बातचीत नहीं हो सकी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, लगभग 200 भारतीय रूसी सेना में मौजूद हैं। कई राज्यों में मानव तस्करी के जरिए भी भारतीयों को रूस भेजा गया है। भारतीयों के कई वीडियो सामने आ चुके हैं, जिसमें पंजाब, हरियाणा, और दक्षिण भारत के लोग रूसी सेना की ड्रेस में नजर आते हैं।
पीएम मोदी और पुतिन की मुलाकात
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूस दौरे के दौरान, उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भारतीय सैनिकों का मुद्दा उठाया। पुतिन ने इस मांग को मंजूरी दे दी और कहा कि कागजी कार्रवाई पूरी होने के बाद लगभग 200 भारतीय स्वदेश वापस लौट सकेंगे। इस निर्णय ने भारतीय परिवारों को राहत दी है, जो अपने प्रियजनों की सुरक्षित वापसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
भारतीय युवाओं का रूस जाना और वहां की सेना में शामिल होना एक जटिल और दुखद कहानी है। गरीबी और बेरोजगारी से त्रस्त ये युवा बेहतर जीवन की तलाश में विदेश गए, लेकिन वहां की जमीनी हकीकत ने उनकी उम्मीदों को चकनाचूर कर दिया। यह घटना न केवल मानव तस्करी और गुमराह करने वाले एजेंट्स की काली सच्चाई को उजागर करती है, बल्कि सरकार और समाज को भी यह सोचने पर मजबूर करती है कि युवाओं के लिए रोजगार और बेहतर जीवन के अवसर कैसे उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
यह समय है कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करे और ऐसे एजेंट्स के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे जो निर्दोष युवाओं को गुमराह कर उन्हें जोखिम भरे हालात में डालते हैं। इसके अलावा, युवाओं को भी सचेत रहने की जरूरत है और उन्हें अपने फैसलों के बारे में अच्छी तरह से सोच-समझकर निर्णय लेना चाहिए।
यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि बेहतर जीवन की तलाश में विदेश जाने का सपना देखना गलत नहीं है, लेकिन यह जरूरी है कि हम सही जानकारी और सच्चे साधनों के माध्यम से ही अपने सपनों को साकार करें।