भारत में 15 अगस्त का दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह वह दिन है जब हमारा देश ब्रिटिश हुकूमत से मुक्त हुआ और एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बनाई। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत को आजादी 15 अगस्त से पहले ही मिल सकती थी? दरअसल, भारत को आजादी मिलने की तारीख 15 अगस्त से पहले निर्धारित की गई थी, लेकिन कुछ कारणों से इसे बदलना पड़ा। इस लेख में हम जानेंगे कि आखिर क्यों भारत को 15 अगस्त को आजादी मिली और इसके पहले स्वतंत्रता दिवस की कहानी क्या थी।
26 जनवरी: पहला स्वतंत्रता दिवस
आजादी की कहानी 1930 से शुरू होती है, जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 26 जनवरी को पूर्ण स्वराज दिवस यानी स्वतंत्रता दिवस के रूप में घोषित किया। 1929 में लाहौर में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू सहित अन्य नेताओं ने मिलकर यह निर्णय लिया था। पंडित नेहरू ने अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए एक प्रस्ताव रखा, जिसमें कहा गया कि अगर अंग्रेजी हुकूमत ने 26 जनवरी 1930 तक भारत को स्वतंत्रता नहीं दी, तो भारत खुद को स्वतंत्र घोषित कर लेगा। इसके बाद, कांग्रेस ने 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का संकल्प लिया।
26 जनवरी 1930: पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया गया
26 जनवरी 1930 को पूरे देश में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। इस दिन महात्मा गांधी ने पूरे देश में संदेश फैलाने के निर्देश दिए, और देशवासियों ने इस निर्देश का पालन करते हुए राष्ट्रीय ध्वज फहराया और स्वतंत्रता दिवस शांति और सद्भावना के साथ मनाया। इस अवसर पर पंडित नेहरू ने भी तिरंगा फहराया और भारतीय जनता ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया। यह दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इस दिन की एकता और संकल्प ने अंग्रेजों की चिंता बढ़ा दी, और उन्हें अहसास हुआ कि भारतीय जनता आजादी के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
15 अगस्त: माउंटबेटन का निर्णय
अब सवाल उठता है कि जब 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जा रहा था, तो फिर 15 अगस्त को ही क्यों स्वतंत्रता दिवस के रूप में चुना गया? इसका उत्तर लार्ड माउंटबेटन की लक में विश्वास से जुड़ा हुआ है। जब भारत की स्वतंत्रता की तारीख तय करने की बात आई, तो उस समय के वायसराय और गवर्नर-जनरल लार्ड माउंटबेटन ने 15 अगस्त की तारीख को चुना। इसका मुख्य कारण यह था कि माउंटबेटन के अनुसार, 15 अगस्त की तारीख उनके लिए शुभ थी।
लार्ड माउंटबेटन 15 अगस्त को इसलिए शुभ मानते थे क्योंकि इसी दिन, 15 अगस्त 1945 को जापानी सेना ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आत्मसमर्पण किया था। माउंटबेटन उस समय अलाइड फोर्सेज के कमांडर थे और इस जीत के नायक के रूप में उन्हें देखा जाता था। इसलिए, जब भारत को स्वतंत्रता देने की बात आई, तो माउंटबेटन ने 15 अगस्त को चुना। यही कारण है कि भारत को 15 अगस्त 1947 की आधी रात को स्वतंत्रता मिली।
स्वतंत्रता की देरी का कारण
भारत को स्वतंत्रता मिलने में देरी का एक और कारण था कि अंग्रेजी सरकार को भारत के विभाजन के मुद्दे पर निर्णय लेना था। 1947 में, भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन की प्रक्रिया भी चल रही थी, और इस विभाजन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में दंगे और हिंसा हो रही थी। इसलिए, स्वतंत्रता की तारीख को लेकर भी समय सीमा का ध्यान रखना पड़ा। विभाजन के मुद्दे और हिंसा की स्थिति के कारण स्वतंत्रता की घोषणा में थोड़ी देरी हुई, लेकिन अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली।
15 अगस्त 1947 का दिन भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है। इस दिन भारत ने वर्षों की गुलामी के बाद स्वतंत्रता की सांस ली और एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में दुनिया के सामने खड़ा हुआ। हालांकि, आजादी की यह यात्रा आसान नहीं थी और इसके पीछे कई महत्वपूर्ण घटनाएं और निर्णय थे। 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का संकल्प और 15 अगस्त को माउंटबेटन द्वारा चुनी गई तारीख, दोनों ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण अध्याय हैं। आज हम 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं, लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि इस आजादी की नींव वर्षों पहले रखी गई थी, और इसके लिए लाखों लोगों ने अपने जीवन का बलिदान दिया था।