राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर 58 साल पुरानी रोक को हटाए जाने के निर्णय ने राजनीतिक हलकों में एक बार फिर से चर्चा का विषय बना दिया है। इस फैसले को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला है, और 58 साल पुराने उस आदेश की भी याद दिलाई है जब इस रोक को पहली बार लगाया गया था।
1966 में रोक लगाने का कारण

1960 के दशक में भारत में गोहत्या को लेकर व्यापक असंतोष फैल रहा था। गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने और गोरक्षा को लेकर सख्त कानून बनाने की मांग जोर पकड़ रही थी। 1966 में यह आंदोलन अपने चरम पर पहुंच गया जब साधु-संतों ने दिल्ली की ओर कूच किया और संसद के बाहर धरना-प्रदर्शन किया। 7 नवंबर 1966 को संतों ने आमरण अनशन का ऐलान किया, जिससे सरकार पर दबाव और बढ़ गया।
इस आंदोलन के दौरान स्थिति बेहद तनावपूर्ण हो गई थी। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग की, जिसके परिणामस्वरूप कई साधु-संतों और गोरक्षकों की मौत हो गई। इस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया और दिल्ली में कर्फ्यू लगाने की नौबत आ गई थी। इस हिंसक प्रदर्शन और सरकार के प्रति असंतोष को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर रोक लगा दी। 30 नवंबर 1966 को जारी इस आदेश का उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों को इन संगठनों के राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों से दूर रखना था।
1970 और 1980 में भी जारी हुए आदेश
1966 में रोक लगाए जाने के बाद भी इस मुद्दे पर सरकार ने कई बार विचार किया। 1970 में भी इसी तरह के आदेश जारी किए गए। लेकिन, जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने, तब इस आदेश को निरस्त कर दिया गया। इसके बाद, 1980 में जब इंदिरा गांधी सत्ता में लौटीं, उन्होंने पुराने आदेश को फिर से लागू कर दिया। इस प्रकार, 1980 से 2024 तक यह रोक लागू रही।
रोक हटाए जाने का निर्णय

9 जुलाई 2024 को केंद्र सरकार ने एक आदेश जारी कर इस प्रतिबंध को हटा दिया। इस आदेश में कहा गया कि 30 नवंबर 1966, 25 जुलाई 1970 और 28 अक्टूबर 1980 को जारी हुए सरकारी आदेशों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम हटा दिया जाए। इस फैसले के बाद सरकारी कर्मचारी अब आरएसएस के कार्यक्रमों में भाग ले सकेंगे।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा और जयराम रमेश ने इस निर्णय पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। पवन खेड़ा ने कहा कि 58 साल पहले लगाए गए इस प्रतिबंध का हटाया जाना मोदी सरकार की एक राजनीतिक चाल है। जयराम रमेश ने भी 30 नवंबर 1966 के मूल आदेश का स्क्रीनशॉट शेयर कर यह दावा किया कि यह रोक जायज थी और इसे हटाना गलत है।
आरएसएस पर प्रतिबंध

आरएसएस पर इससे पहले भी तीन बार प्रतिबंध लग चुका है। पहली बार, 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद सरकार ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था। हालांकि, 11 जुलाई 1949 को संघ ने अपना संविधान बनाने और उसे प्रकाशित करने की शर्तों के साथ यह प्रतिबंध हटा लिया गया। दूसरी बार, 1975 में आपातकाल के दौरान आरएसएस को प्रतिबंध का सामना करना पड़ा। बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों को जेल में डाला गया और यह प्रतिबंध 2 साल तक चला। तीसरी बार, 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद आरएसएस पर 6 महीनों तक प्रतिबंध लगाया गया।
58 साल पुरानी रोक को हटाए जाने का निर्णय एक महत्वपूर्ण राजनीतिक कदम है। यह निर्णय एक तरफ जहां सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस के कार्यक्रमों में शामिल होने की अनुमति देता है, वहीं दूसरी ओर इसने राजनीतिक विवादों को भी जन्म दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में इस फैसले का भारतीय राजनीति और सरकारी कर्मचारियों पर क्या प्रभाव पड़ता है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस मुद्दे को आगामी चुनावों में जोर-शोर से उठाएंगे, जिससे यह विषय चर्चा में बना रहेगा।