2G घोटाले के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की यह फैसला कि पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा और अन्य आरोपियों को बरी किया जाना चाहिए या नहीं, यह तो सीबीआई के अपील के सुनवाई के दौरान होगा। इस फैसले से आरोपियों की ओर से बड़ी राहत मिली है, लेकिन इसमें अंतराल में यह भी उठाया जा रहा है कि क्या यह फैसला राजनीतिक है या फिर न्यायिक दृष्टिकोण से सही है।

2G घोटाला देश के इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना है, जिसने देश में राजनीतिक तथा सामाजिक उत्थान में बड़े बदलाव का संजोग लाया। इस घोटाले में कई बड़ी कंपनियों को आपस में मिलकर सस्ते रेट पर स्पेक्ट्रम लाइसेंस देने का आरोप था। इससे देश को लाखों करोड़ों का नुकसान हुआ और लोगों में बड़ा आतंक फैला।
इस मामले में सीबीआई ने विभिन्न आरोपियों के खिलाफ केस दायर किया था, जिसमें पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा को भी शामिल किया गया था। लेकिन हाईकोर्ट ने सीबीआई की इस अपील को चुनौती देने के लिए तैयारी की है, जिससे दोबारा मामले की सुनवाई हो सके।

2G घोटाले के बाद बड़े आदालतों में तीव्र चर्चा हुई थी और इस मामले में कई बड़े नेताओं और व्यापारियों को गिरफ्तार भी किया गया था। इसके बाद इस मामले में अदालतों में लंबी सुनवाई हुई और अंततः 2017 में विशेष अदालत ने आरोपियों को बरी कर दिया था।
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद फिर से यह सवाल उठता है कि क्या इस मामले में न्यायिक तंत्र का दबाव हो रहा है या फिर यह राजनीतिक है। इसके साथ ही यह भी मामला खुले रहता है कि क्या इस मामले में बरी होने के पीछे कोई नई राजनीतिक या दबाव था।
समाज में इस फैसले को लेकर विभिन्न राय और धारणाएं हैं। कुछ लोग इसे न्यायिक दृष्टिकोण से सही मानते हैं, जबकि कुछ लोग इसे राजनीतिक दबाव का परिणाम मानते हैं। इसके साथ ही इस मामले में सार्वजनिक स्तर पर न्याय की सहीता पर भी सवाल उठते हैं