जरा हमें इस भूमि अधिग्रहण के मामले में गहराई से जाकर देखते हैं। एनएचएआई द्वारा द्वारका एक्सप्रेसवे के लिए अतिरिक्त मूल्यों में जमीन अधिग्रहण से जुड़ा यह मामला कुछ कहानियों को छुपा सकता है। इसकी शुरुआत साउथ वेस्ट दिल्ली के डीएम ने की थी, जो बमनोली गांव की 19 एकड़ जमीन के लिए दो व्यक्तियों को 353 करोड़ का भुगतान करते हुए मामले की शुरुआत की गई थी। प्रति एकड़ 18.54 करोड़ में खरीदी गई इस जमीन का नाता एनएचएआई के द्वारका एक्सप्रेसवे से था।
मामले में रोड प्रोजेक्ट के लिए जमीन की कीमत को बदलने का आरोप है, जिसमें डीएम हेमंत कुमार का भी शामिल है। इसमें कहा जा रहा है कि 2018 में निर्णय को बदलते हुए जमीन की कीमत को नौ गुना अधिक रेट पर खरीदा गया, जिससे इसमें शामिल व्यक्तियों को सीधा लाभ हुआ। इस मामले में डीएम के निर्णय के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट गई गई है, और कैग की हालिया रिपोर्ट में भी इस मुद्दे पर सवाल उठाए गए हैं।
जमीन के मूल्य में फेरबदल के पीछे का कारण यह है कि पहले यह कृषि भूमि थी, जिसके कारण इसके रेट कम थे, लेकिन बाद में इसे आबादी वाले इलाके में तब्दील किया गया। इसके बाद नए परिस्थितियों के मुताबिक इसे अधिक मूल्य पर खरीदा गया। इसमें सुभाष चंद्र कथूरिया और उनके भाई विनोद कथूरिया का नाम आया है, जिन्हें इस जमीन के लिए अतिरिक्त दरों पर खरीदारी का लाभ हुआ है। इसके अलावा, इस मामले में दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार का नाम भी शामिल है, जिन्होंने इससे जुड़े किसी भी आरोप में अपनी किसी भी प्रकार की कथित भूमिका से इनकार किया है।
यह मामला सामाजिक, नैतिक, और न्यायिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण पहलू प्रस्तुत करता है जिससे व्यावसायिक हित और सार्वजनिक नीति के बीच टकराव सामने आता है। इसमें नानावती और बोफोर्स की तरह कुछ इतिहास की धाराओं को भी महसूस किया जा सकता है, जो समाज में विशेष रूप से जमीन के सम्बंध में उत्तेजना पैदा कर सकते हैं। इस मामले की जाँच से सीधे संपर्क में रहना महत्वपूर्ण है ताकि सच्चाई सामने आ सके और न्याय हो सके।