पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों ने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। इस क्रम में प्रशांत किशोर, जिन्हें पीके के नाम से भी जाना जाता है, ने अपनी राजनीतिक रणनीति ‘जन सुराज’ के माध्यम से बिहार की राजनीति में एक नई दिशा देने का प्रयास शुरू कर दिया है। जन सुराज के राज्य स्तरीय बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया है कि दल के नेतृत्व का पहला अवसर दलित समाज को दिया जाएगा। यह कदम बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का संकेत है, जहां जातीय वर्चस्व को चुनौती देने की तैयारी की जा रही है।
जन सुराज की रणनीति

प्रशांत किशोर ने बिहार की जातीय राजनीति को समझते हुए एक ऐसी रणनीति बनाई है, जो विभिन्न जातियों के बीच संतुलन और समावेशिता पर आधारित है। जन सुराज की राज्य स्तरीय बैठक में यह निर्णय लिया गया है कि दल के नेतृत्व का पहला अवसर दलित समाज को दिया जाएगा। इसके बाद अति-पिछड़ा और मुस्लिम समाज में से नेतृत्व का चयन किया जाएगा। इस निर्णय के पीछे प्रशांत किशोर की यह सोच है कि सभी जातियों को समान अवसर और भागीदारी मिलनी चाहिए।
25 सदस्यीय संचालन समिति
प्रशांत किशोर ने जन सुराज की 25 सदस्यीय संचालन समिति का गठन करने का निर्णय लिया है। यह समिति विभिन्न जातियों के लोगों से मिलकर बनाई जाएगी, जिसमें सामान्य वर्ग, ओबीसी, अति-पिछड़ा, दलित और मुस्लिम समाज के लोग शामिल होंगे। समिति का गठन संख्या के हिसाब से किया जाएगा, ताकि हर जाति को उनके जनसंख्या अनुपात के अनुसार प्रतिनिधित्व मिल सके।
नेतृत्व के अवसर

जन सुराज की रणनीति के अनुसार, प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति को एक-एक साल के लिए नेतृत्व करने का अवसर मिलेगा। पांच साल के भीतर सभी वर्ग के लोगों को एक-एक बार जन सुराज का नेतृत्व करने का अवसर मिलेगा। पहला अवसर दलित समाज के व्यक्ति को दिया जाएगा, इसके बाद अति-पिछड़ा या मुस्लिम समाज को, और फिर ओबीसी और सामान्य वर्ग के बीच से किसी व्यक्ति को। यह निर्णय बिहार के राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ने का प्रयास है, जहां हर समाज को समान अधिकार और प्रतिनिधित्व मिलेगा।
भागीदारी और हिस्सेदारी
प्रशांत किशोर ने यह भी घोषणा की है कि जन सुराज संख्या के हिसाब से हिस्सेदारी और टिकट देने में कोई कटौती नहीं करेगा। हर समाज में काबिल लोग हैं, और उन्हें उनकी संख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व मिलेगा। इस विचारधारा को आत्मसात करते हुए जन सुराज का उद्देश्य है कि किसी भी समाज से आने वाले लोगों की संख्या से ज्यादा न कम हिस्सेदारी मिले।
राजनीतिक प्रभाव

प्रशांत किशोर की यह रणनीति बिहार की राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ी चुनौती है। जातीय वर्चस्व को तोड़ने की यह कोशिश राज्य की राजनीति में एक नई दिशा और दृष्टिकोण पेश कर रही है। जातीय राजनीति के लिए प्रसिद्ध बिहार में यह कदम निश्चित रूप से अन्य राजनीतिक दलों को भी सोचने पर मजबूर करेगा।
प्रशांत किशोर का जन सुराज एक महत्वपूर्ण कदम है जो बिहार की राजनीति में समानता और समावेशिता को बढ़ावा देगा। जातीय वर्चस्व को चुनौती देकर, यह रणनीति विभिन्न जातियों के बीच संतुलन और साझेदारी को बढ़ावा देगी। यदि यह योजना सफल होती है, तो यह बिहार की राजनीति में एक नई दिशा और दृष्टिकोण पेश करेगी, जहां हर समाज को समान अधिकार और प्रतिनिधित्व मिलेगा। प्रशांत किशोर की यह कोशिश निश्चित रूप से बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का संकेत है और आने वाले चुनावों में इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है।