भोपाल में सरकार द्वारा प्रस्तावित री-डेवलपमेंट स्कीम ने शहर के नागरिकों, विशेषकर महिलाओं, में भारी आक्रोश पैदा किया है। इस योजना के अंतर्गत मंत्रियों, विधायकों और अफसरों के लिए 3000 करोड़ रुपये की लागत से नए आवास और अपार्टमेंट बनाए जाने का प्रस्ताव है, जिसके चलते 30 हजार से लेकर 60 हजार तक पुराने पेड़ों के काटे जाने की संभावना है। इससे स्थानीय लोगों में नाराजगी और विरोध की लहर उठ गई है।
चिपको आंदोलन की शुरुआत
भोपाल की महिलाओं ने उत्तराखंड के ऐतिहासिक ‘चिपको आंदोलन’ की तर्ज पर पेड़ों को बचाने के लिए अपने तरीके से विरोध करना शुरू कर दिया है। वे पेड़ों से चिपककर सरकार के इस फैसले का विरोध कर रही हैं। यह आंदोलन इसलिए शुरू हुआ क्योंकि पेड़ों की कटाई से न केवल पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ेगा, बल्कि शहर की हरियाली भी खत्म हो जाएगी। महिलाओं का कहना है कि इस परियोजना से ना केवल शहर की हरियाली कम होगी, बल्कि इससे तापमान में भी वृद्धि होगी, जो पहले से ही ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ता जा रहा है।
पेड़ों का महत्व और उनका संरक्षण
भोपाल की हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता के लिए यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है। यहां पर 30 से 60 साल पुराने पेड़ हैं, जो न केवल पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, बल्कि शहर को स्वच्छ वायु और छाया भी प्रदान करते हैं। इन पेड़ों के काटे जाने से हीट स्मॉग बढ़ने और ओजोन प्रदूषण में वृद्धि होने की संभावना है, जिससे शहर का तापमान और भी बढ़ जाएगा। पर्यावरण संरक्षकों का मानना है कि यह क्षेत्र भोपाल के लंग्स की तरह है, और इन्हें बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।
सरकार की योजना और उसका विरोध
सरकार की री-डेवलपमेंट स्कीम के तहत 250 एकड़ में फैले इस क्षेत्र में लगभग 3000 बंगले तोड़े जाने हैं और उनकी जगह नए आवास बनाए जाने हैं। इसके अलावा 4000 से ज्यादा मकान भी बनने की योजना है। हालांकि, मध्य प्रदेश के मुखिया डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि यह योजना अभी प्रारंभिक अवस्था में है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना इसे आगे बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि जरूरत पड़ने पर पेड़ों को शिफ्ट करने की योजना है, लेकिन पर्यावरण संरक्षकों ने इस तर्क को खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि पहले भी स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत पेड़ों को शिफ्ट करने का प्रयास किया गया था, लेकिन वह असफल रहा।
नागरिकों की चिंताएँ
भोपाल के नागरिक इस योजना से बेहद चिंतित हैं। उनका कहना है कि शहर की हरियाली और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर किसी भी विकास योजना का कोई औचित्य नहीं है। नागरिकों का मानना है कि यह योजना शहर की प्राकृतिक सुंदरता को नष्ट कर देगी और साथ ही लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालेगी। उनका यह भी कहना है कि शहर में पहले से ही कई निर्माण कार्य चल रहे हैं, जिनसे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। ऐसे में नई परियोजनाओं के लिए और पेड़ों की कटाई करना अनुचित है।
भोपाल में चल रहे चिपको आंदोलन ने यह साबित कर दिया है कि शहर के नागरिक अपने पर्यावरण के प्रति कितने संवेदनशील हैं। महिलाओं का पेड़ों से चिपककर विरोध करना यह दिखाता है कि वे अपने शहर की हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। सरकार को चाहिए कि वह जनता की भावनाओं का सम्मान करे और इस परियोजना को लागू करने से पहले पर्यावरणीय प्रभावों का गहन अध्ययन करे।
पर्यावरण को बचाना और विकास के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौती है। यदि सरकार और जनता मिलकर काम करें तो इस चुनौती को सफलतापूर्वक पार किया जा सकता है। भोपाल की हरियाली और पर्यावरण को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ और सुंदर पर्यावरण मिल सके।