हिंदू (सनातन) धर्म में मनुष्य से जुड़े तीन ऋण- ऋषि ऋण, देव ऋण, एवं पितृ ऋण बताए जाते हैं। इनमें से पितृ ऋण को उतारने के लिए गया तीर्थ में श्राद्ध करने का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है। गया तीर्थ में पितृपक्ष के दौरान किए जाने वाले श्राद्ध एवं पिंडदान का धार्मिक महत्व को विस्तार से जानने के लिए निम्नलिखित लेख पढ़ें
गया में श्राद्ध का महत्व
हिंदू धर्म में जिस प्रकार देवी-देवताओं की पूजा के लिए तमाम तीर्थों पर जाकर उनकी साधना की जाती है, कुछ वैसे ही पितरों की प्रसन्नता और उनके मुक्ति के लिए गया धाम पर जाकर विशेष रूप से श्राद्ध एवं पिंडदान का विधान है। हिंदू धर्म में गया एक ऐसा तीर्थ है जहां पर जाकर श्रद्धा एवं विश्वास के साथ अपने पितरों या फिर कहें पूर्वजों के लिए किया जाने वाला श्राद्ध पितृ दोष से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है। मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति गया तीर्थ पर जाकर किसी पितर विशेष के लिए उनका नाम एवं गोत्र आदि के साथ पिंडदान करता है तो उसे परमगति प्राप्त होती है। हिंदू (सनातन) धर्म मान्यता के अनुसार गया तीर्थ में किया जाने वाला श्राद्ध कुल(वंश) की सात पीढि़यों को तार(मुक्ति) देता है।
गया से जुड़ी धार्मिक मान्यता
हिंदू मान्यता के अनुसार गया एक पवित्र नगरी है जहां पर भगवान श्री विष्णु पितरों के देवता के रूप में स्वयं निवास करते हैं। मान्यता यह भी है कि पौराणिक काल में भगवान श्री राम और माता सीता ने भी गया में राजा दशरथ के लिए विशेष रूप से श्राद्ध किये थे ।
कितने दिन तक करते हैं श्राद्ध
गया तीर्थ में 3दिन, 5दिन, 7दिन या फिर 17 दिनों तक रुककर अपने पितरों के लिए श्राद्ध एवं पितरों की पूजा का विधान है। हालांकि आजकल लोगो में समय की कमी के कारण आप इसे एक दिन में ही करके अपने पितरों की मुक्ति का मार्ग खोल सकते हैं। यदि आपके पास समय की कमी है तो आप फल्गु नदी में स्नान करने के बाद पावन विधि से पितरों का श्राद्ध करके पितरों का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
कब और क्यों किया जाता है श्राद्ध
पौराणिक मान्यता के अनुसार गयासुर को परमपिता ब्रह्मा जी ने यह आशीर्वाद दिया था कि जो कोई मनुष्य पितृपक्ष के दौरान इस जगह पर अपने पितरों के लिए यह पिंडदान का कार्य करेगा, उसके पितरों को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होगी। पितरों के श्राद्ध एव पिंडदान के लिए मध्याह्न बेला या फिर कहें अपराह्न का समय सबसे अच्छा माना गया है। ऐसे में यहां जाकर अपने पितरों के लिए श्राद्ध दोपहर 11:30 से 12:30 बजे के बीच में ही करें।
गया में श्राद्ध का नियम
गया तीर्थ में जाकर श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को पुरे दिन भर में एक बार अन्न का ग्रहण करना चाहिए और किसी भी प्रकार का अमर्यादित या गलत काम नहीं करना चाहिए। पितरों का श्राद्ध करने के लिए गया में रात्रि के दौरान रहने वाले लोगों को पूर्णतः ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और निंदा(शिकायत) और झूठा बचन बोलने से परहेज करना चाहिए।
बालू से किया जाता है पिंडदान
हिंदू मान्यता के अनुसार गया में बालू का पिंडदान करने का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है। मान्यता है कि जब भगवान राम और माता सीता राजा दशरथ का पिंडदान करने के लिए गया पहुंचे और उसकी तैयारी शुरू की तभी आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का बक्त बीतता जा रहा है। तब माता सीता जी ने वटवृक्ष,फल्गु नदी, गाय और केतकी के फूल को साक्षी मानते हुए बालू से पिंंड बनाकर पिंडदान की प्रक्रिया पूरी की। तब से लेकर आज तक यहां पर पितरों की मुक्ति के लिए बालू के पिंडदान करने की मान्यता बनी हुई है।
इस तरह, गया तीर्थ में किए जाने वाले श्राद्ध का महत्व और इसके प्रामाणिक नियमों को जानकर हिंदू धर्म के अनुसार पितरों के यात्रा को समझ सकते हैं।