बिहार में पुल गिरने की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। पिछले 11 दिनों में राज्य में पांच पुल ढह गए हैं, जिससे राज्य प्रशासन और सरकार की कार्यक्षमता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। इन घटनाओं ने राज्य में हो रहे निर्माण कार्यों की गुणवत्ता और निगरानी पर सवालिया निशान लगा दिए हैं।
मधुबनी में पुल ढहने की घटना
शुक्रवार को मधुबनी जिले के झंझारपुर में एक निर्माणाधीन पुल ढह गया। यह घटना पिछले 11 दिनों में पांचवीं बार हुई है जब बिहार में कोई पुल गिरा है। इस पुल का निर्माण बिहार सरकार के ग्रामीण विकास विभाग द्वारा प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत किया जा रहा था और इसकी अनुमानित लागत करीब 3 करोड़ रुपये थी।
प्रशासन की लापरवाही
मधुबनी जिले में 77 मीटर लंबे इस पुल के दो खंभों के बीच लंबे गर्डर का एक हिस्सा ढह गया। इस लापरवाही को छिपाने के लिए प्रशासन ने टूटे हुए हिस्से को प्लास्टिक से ढक दिया, ताकि लोगों को पुल ढहने के बारे में पता न चल सके। तीन दिन पहले, यानी 26 जून को इस पुल के गर्डर की ढलाई हुई थी, जो गुरुवार को ढह गया।
ठेकेदार का बयान
ठेकेदार अमरनाथ झा ने बताया कि नदी में जलस्तर बढ़ने से गर्डर गिर गया। साथ ही उन्होंने दावा किया कि नदी का जलस्तर कम होने के बाद पुल का पुनर्निर्माण किया जाएगा।
विपक्ष का हमला
बिहार में पुल निर्माण में हो रही लापरवाही और भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर विपक्ष ने नीतीश सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। 11 दिनों के अंदर पांच पुल गिरने की घटना ने राज्य सरकार की कार्यक्षमता और निर्माण मानकों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अन्य पुल गिरने की घटनाएँ
1. अररिया: 18 जून को अररिया में बकरा नदी पर 12 करोड़ रुपये की लागत से बना पुल ढह गया।
2.सीवान: 22 जून को सीवान जिले में गंडक नदी पर बना करीब 40-45 साल पुराना पुल गिर गया।
3. पूर्वी चंपारण: 23 जून को पूर्वी चंपारण में करीब 1.5 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा एक निर्माणाधीन पुल ढह गया। स्थानीय लोगों ने ठेकेदारों पर घटिया सामग्री का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया।
4. किशनगंज: 27 जून को किशनगंज जिले में कंकई और महानंदा नदियों को जोड़ने वाली एक छोटी सहायक नदी पर बना पुल भी ढह गया।
निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल
इन घटनाओं ने बिहार में हो रहे निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पुल निर्माण में उपयोग हो रही सामग्री की गुणवत्ता और निर्माण मानकों की अनुपालन की स्थिति पर सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि ठेकेदार घटिया सामग्री का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे इन पुलों की मजबूती कम हो रही है।
सरकारी अधिकारियों की जिम्मेदारी
इन घटनाओं के बाद यह स्पष्ट है कि सरकारी अधिकारियों की जिम्मेदारी और उनकी निगरानी में कमी है। निर्माण कार्यों की सही निगरानी और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सरकारी अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से लेना होगा।
समाधान के उपाय
इन घटनाओं से सीख लेते हुए राज्य सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे:
1. गुणवत्ता नियंत्रण: निर्माण कार्यों में उपयोग हो रही सामग्री की गुणवत्ता की नियमित जांच होनी चाहिए।
2. निर्माण मानकों की अनुपालन: निर्माण मानकों की सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करना होगा।
3. निगरानी और निरीक्षण: निर्माण कार्यों की नियमित निगरानी और निरीक्षण के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी का गठन किया जा सकता है।
4. दोषियों पर कार्रवाई: लापरवाही बरतने वाले ठेकेदारों और अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
5. समाज की भागीदारी: स्थानीय समाज को भी निर्माण कार्यों की निगरानी में शामिल किया जा सकता है।
बिहार में पुल गिरने की घटनाएँ राज्य की निर्माण प्रणाली की खामियों को उजागर करती हैं। इन घटनाओं ने राज्य सरकार की कार्यक्षमता और निर्माण मानकों की अनुपालन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब जरूरत है कि राज्य सरकार ठोस कदम उठाए और निर्माण कार्यों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करे ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाएँ न हो। यह न केवल सरकारी धन की बर्बादी रोकने के लिए आवश्यक है, बल्कि जनता की सुरक्षा और विश्वास बहाल करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।