बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति के बारे में चिंता का माहौल है। नालंदा के सदर अस्पताल में हुई बिजली की गई लापरवाही की घटना ने फिर से इस विवाद को सुर्खियों में ला दिया है। बिहार के अस्पतालों की अवस्था पहले से ही निराशाजनक है, और इस घटना ने इसे और भी गहरा बना दिया है।
नालंदा के सदर अस्पताल में हुई बिजली की गुल हो जाने की घटना चिंताजनक है। विशेषज्ञों के अनुसार, एक अस्पताल में बिजली की गुल हो जाने का खतरा जीवन के लिए बहुत बड़ा हो सकता है, खासकर जब इसे एमरजेंसी वार्ड जैसे कार्यक्षेत्रों में हो। यह घटना मरीजों और उनके परिजनों के लिए अत्यंत परेशानीजनक है।

मिशन 60 के तहत अस्पतालों को अपग्रेड किया जाना था, लेकिन यह घटना स्पष्ट रूप से दिखाती है कि इस अपग्रेडेशन के बावजूद भी बिहार के अस्पतालों की अवस्था कितनी निराशाजनक है। अस्पताल में इस तरह की लापरवाही से मरीजों को जोखिम में डाला जा रहा है।
बिजली गुल होने पर डॉक्टरों को टार्च की रोशनी में मरीजों का इलाज करना पड़ता है। इसके अलावा, एसएनसीयू के लिए बैकअप के रूप में इनवर्टर और जेनसेट की सुविधा भी होती है, लेकिन इस घटना में यह साबित हो गया कि इन उपकरणों का उपयोग सही ढंग से नहीं हो रहा है।

सदर अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में नवजात बच्चों की भर्ती होती है, जो कि बिना बिजली के एक घंटे तक रहना पड़ता है। इससे न केवल बच्चों की स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, बल्कि यह डॉक्टरों और नर्सों को भी काम करने में परेशानी होती है।
बिहार सरकार को इस मामले का गंभीरता से सामना करना चाहिए। अस्पतालों की सुविधाओं को सुनिश्चित करने के लिए उन्हें विशेष ध्यान देना चाहिए, ताकि मरीजों को सही समय पर और सही ढंग से इलाज मिल सके।
इस घटना से उजागर होता है कि बिहार के स्वास्थ्य सेवाओं की अवस्था कितनी निराशाजनक है और इसे तुरंत सुधार की ज़रूरत है। लोगों के जीवन की सुरक्षा और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि ऐसी घटनाएं फिर से न हों।