भारत और अमेरिका के बीच हाल ही में हुए तनाव की चर्चा दुनिया भर में हो रही है। कनाडा के बाद अब अमेरिका में भी खालिस्तानी आतंकवाद के मामले में हत्या की साजिश का आरोप लगाया जा रहा है। इसके पीछे भारत का नाम आना और अमेरिका की ओर से इसकी जांच का आदान-प्रदान होना दिलचस्पीपूर्ण है।
यूएस अटॉर्नी मैथ्यू जी ऑल्सन के अनुसार, एक सिख अलगाववादी की हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया गया है। इस साजिश के लिए आरोपित निखिल गुप्ता को बुधवार को फेडरल कोर्ट में प्रस्तुत किया गया। आरोप के अनुसार, इस साजिश की सुपारी के लिए निखिल गुप्ता को 1 लाख अमेरिका डॉलर दिए गए थे। इस मामले में अगर आरोप साबित होते हैं, तो निखिल गुप्ता को 10 साल तक की सजा हो सकती है।
भारत सरकार ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए 18 नवंबर को एक उच्च स्तरीय जांच समिति का गठन किया है। इसका मुख्य उद्देश्य मामले की जांच करना है और यह सुनिश्चित करना है कि न्यायिक प्रक्रिया ठीक से हो। भारतीय प्रधानमंत्री ने इस मामले को गंभीरता से लेकर इस पर विचार करने का आदान-प्रदान किया है।
मामले के मुख्य आरोपी गुरपतवंत सिंह पन्नू हैं, जो मूल रूप से पंजाब के हैं और अब अमेरिका में रहते हैं। उन्हें अमेरिका और कनाडा की दोहरी नागरिकता है। पन्नू खालिस्तानी आतंकवाद के प्रोत्साहन में शामिल हैं और इसके लिए वैश्विक फंडिंग कर रहे हैं। भारत सरकार ने उन्हें आतंकी घोषित कर दिया है, लेकिन उन्हें अमेरिका मानवाधिकार के नाम पर बचाने में लगा हुआ है।
इस समय तनावपूर्ण परिस्थितियों में, भारत ने अपने संरक्षण और सुरक्षा के लिए सख्ती से कदम उठाए हैं और अपने साकारात्मक प्रयासों के माध्यम से सुरक्षा में सुधार करने का कारगर तरीका अपना रहे हैं। इसमें अमेरिका की सहयोगी भूमिका भी महत्वपूर्ण है।
यह घटना एक बार फिर से दिखा रही है कि आतंकवाद और उसके प्रोत्साहन का मुकाबला करने के लिए अन्तरराष्ट्रीय समुद्र में साथ मिलना हम सभी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत ने इस मामले की सख्ती से जांच करने का आदान-प्रदान किया है और आतंकवाद के खिलाफ एकजुट दुनिया की आवश्यकता है।