चंपई सोरेन का राजनीति में आया एक नया मोड़, खासकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के भीतर की खींचतान और राजनीति के जटिल समीकरणों को उजागर करता है। चंपई सोरेन को झारखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और हेमंत सोरेन की वापसी हुई। इस पूरे घटनाक्रम को समझने के लिए कई पहलुओं पर गौर करना जरूरी है।
चंपई सोरेन का इस्तीफा
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चंपई सोरेन का मुख्यमंत्री पद से हटना उतना सहज नहीं था जितना कि यह दिख रहा था। सूत्रों के मुताबिक, चंपई ने अपनी कुर्सी बचाने की पूरी कोशिश की थी। उन्होंने तर्क दिया था कि चुनाव में सिर्फ कुछ ही महीने बचे हैं और ऐसे समय में मुख्यमंत्री का बदलाव उचित संदेश नहीं देगा। इसके अलावा, उन्होंने हेमंत सोरेन के सिर्फ जमानत पर बाहर होने की बात उठाई और कहा कि इससे सरकार को अस्थिर करने की कोशिश हो सकती है।
जेएमएम का फैसला
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने हेमंत सोरेन के पक्ष में खड़े होकर इस फैसले को मजबूती दी। इसके पीछे के कारणों को समझना भी महत्वपूर्ण है:
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1. नेतृत्व की स्पष्टता: जेएमएम, राजद और कांग्रेस का गठबंधन यह मानता है कि 2019 के चुनाव हेमंत सोरेन के नेतृत्व में लड़ा और जीता गया था। ऐसे में आगामी चुनावों में भी उनका नेतृत्व महत्वपूर्ण है।
2. वोट बैंक की स्थिरता: चंपई के मुख्यमंत्री बने रहने से पार्टी और वोट बैंक में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती थी। जनता के बीच यह स्पष्ट संदेश देने के लिए कि पार्टी और सरकार की कमान हेमंत के पास है, यह निर्णय आवश्यक था।
3. गठबंधन की मजबूती: हेमंत सोरेन के शीर्ष पर रहने से गठबंधन में एकजुटता दिखेगी और विपक्ष का मुकाबला करने में आसानी होगी।
भाजपा का दृष्टिकोण
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भाजपा ने इस पूरे घटनाक्रम को परिवारवाद के नजरिये से देखा है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि झारखंड में चंपई सोरेन का युग खत्म हो गया है और परिवारवादी पार्टी में परिवार के बाहर के लोगों का कोई राजनीतिक भविष्य नहीं है। भाजपा की झारखंड इकाई के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने आरोप लगाया कि शिबू सोरेन के परिवार के बाहर के आदिवासी झामुमो में केवल अस्थायी चेहरे हैं। उन्होंने कहा कि ‘कोल्हान का टाइगर’ कहे जाने वाले चंपई सोरेन को चूहा बना दिया गया है।
चंपई सोरेन का भविष्य
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सूत्रों का मानना है कि नई हेमंत सोरेन सरकार में चंपई को फिर से मंत्री पद मिल सकता है। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वह इस प्रस्ताव को स्वीकार करेंगे। पार्टी उन्हें नाराज करने का जोखिम नहीं लेना चाहेगी, क्योंकि वह कोल्हान क्षेत्र से आते हैं, जो आदिवासी बहुल क्षेत्र है और वहाँ की 14 सीटें चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
विधानसभा का गणित
झारखंड की विधानसभा में कुल 81 सदस्य हो सकते हैं, लेकिन फिलहाल 76 सदस्य हैं। वर्तमान में 12 मंत्रियों की अनुमति है, लेकिन केवल 10 मंत्री हैं। झामुमो-नीत गठबंधन के विधायकों की संख्या घटकर 45 रह गई है, जिनमें झामुमो के 27, राजद का एक और कांग्रेस के 17 विधायक शामिल हैं। भाजपा के विधायकों की संख्या भी घटकर 24 रह गई है।
चंपई सोरेन का मुख्यमंत्री पद से हटना और हेमंत सोरेन का वापसी का यह पूरा घटनाक्रम झारखंड की राजनीति में एक नया मोड़ लाया है। इस निर्णय के पीछे की रणनीति, राजनीतिक दलों के बीच की खींचतान और आगामी चुनावों के लिए तैयारी को समझना महत्वपूर्ण है। चंपई सोरेन का भविष्य और पार्टी में उनकी भूमिका भी दिलचस्पी का विषय बने रहेंगे। यह देखना बाकी है कि झारखंड की जनता इस परिवर्तन को कैसे देखती है और आगामी चुनावों में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।