शिवराज सिंह चौहान को सीएम बनाने की पहल की बात के बाद भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन्हें उनके कद के बराबर काम की जिम्मेदारी देने का ऐलान किया है. इस फैसले ने राजनीतिक कक्षा में बहुत ही चर्चा का विषय बना हुआ है. इस समय कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि अगर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही भाजपा ने मध्य प्रदेश में विजय प्राप्त की तो उन्हें पुनः सीएम क्यों नहीं बनाया गया?
इस पूरे मुद्दे पर बीजेपी के समर्थक और उनके विरोधी दोनों ही तरफ से सवाल उठ रहे हैं. सोशल मीडिया पर भी लोग इस मुद्दे पर विचार व्यक्त कर रहे हैं. कुछ लोग इसका अर्थ निकालने की कोशिश कर रहे हैं कि यह फैसला भाजपा की नेतृत्व और निर्णय लेने की प्रक्रिया पर कैसा प्रभाव डालेगा. दूसरी तरफ, उनके समर्थक बीजेपी के इस फैसले को सराह रहे हैं और उनका कहना है कि शिवराज सिंह चौहान को सीएम नहीं बनाने पर भी उन्हें उच्च स्तर की जिम्मेदारी मिलेगी.
इस विवाद की याद दिलाते हुए हमें 1985 में हुई घटना की ओर देखना चाहिए जब राजीव गांधी ने मध्य प्रदेश के तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह को राज्यपाल बना दिया था. उनकी जगह मोतीलाल वोरा को मुख्यमंत्री बनाया गया था. तब भी ऐसा ही सवाल उठा था कि अगर अर्जुन सिंह को नेतृत्व में रहने की चाह थी तो उन्हें मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया गया?
1985 की घटना में राजीव गांधी ने यह तर्क दिया था कि अर्जुन सिंह को पंजाब में शांति बनाए रखने के लिए राज्यपाल बनाया गया है. उस समय राजसी उपयोग और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए ऐसा करना उचित माना गया था. लेकिन आज के विवाद में क्या तर्क और किस प्रकार के निर्णय लिए जाएंगे, यह हमें शिवराज सिंह चौहान की मुलाकात के बाद ही पता चलेगा.