ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को विदेश मंत्री बनाए जाने का निर्णय से लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। इस नए दारिया में, इस सवाल पर भी विचार हो रहा है कि इस नेता की नियुक्ति के बाद ब्रिटेन की मध्य पूर्व नीति में कोई बदलाव आएगा या नहीं, खासकर इजरायल-हमास युद्ध के समय।
डेविड कैमरन ने पहले से ही ब्रिटिश राजनीति में अच्छे संबंध बनाए हुए हैं, और उनकी इजरायल में विदेश मंत्री के तौर पर नियुक्ति ने सुर्खियों में आने का कारण बनाया है। इस तरह का फेरबदल, ब्रिटेन की मध्य पूर्व की नीति को लेकर नई स्थिति बना सकता है।
कैमरन का ब्रिटेन की प्रधानमंत्री और कंजर्वेटिव पार्टी के नेता के रूप में सत्ता में रहना 2010 से 2016 तक रहा है, और उनका अनुभव अब विदेश मंत्री के तौर पर सेवानिवृत्त हो सकता है।
इजरायल-हमास युद्ध के दौरान कैमरन की वापसी का मतलब है कि उन्हें मध्य पूर्व के मुद्दों में सशक्त रूप से शामिल होना पड़ सकता है, और इससे ब्रिटेन की नीति में बदलाव आ सकता है। इससे पहले भी, कैमरन ने इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के लिए दो-राज्य समाधान की वकालत की थी, लेकिन उनका समर्थन इजरायल के कट्टर समर्थक रहा है।
कैमरन की नई भूमिका में, उन्हें ब्रिटेन की नीति में मध्य पूर्व के मुद्दों पर अधिक दृष्टिकोण मिल सकता है, और इससे राष्ट्रों के बीच रिश्तों में बदलाव भी हो सकता है। इस मुद्दे पर कैमरन और ब्रिटेन सरकार की दृष्टि के परिवर्तन की जानकारी से हमें यह समझ मिलेगा कि यूके कैसे इस राजनीतिक चुनौती का सामना करेगा।