दिवाली के मौके पर, रांची के एक छोटे से गाँव से निकली एक अनूठी कला की खोज में आए बच्चों ने एक नई रूपरेखा स्थापित की है – “रस्सी की कला”। इन बच्चों ने रस्सी से बनाए गए विभिन्न सजावटी आइटम्स के माध्यम से देखने वालों को हेरान कर दिया है और इन्हें बाजार में एक नए चेहरे के रूप में प्रस्तुत किया है।
इस अनोखे कला की शुरुआत ने लोगों को चौंका दिया है, क्योंकि यह अद्वितीयता और शैली से भरा हुआ है। रस्सी से बनाए गए कछुए, मछली, तितली, बकेट, और घोंसला ने घरों को नई और यूनिक दृष्टिकोण से सजाया है। इन आइटम्स में विशेषता यह है कि ये सभी हाथ से बनाए गए हैं, जिससे उनमें आदिकालीन छाया है और उनका निर्माण विशेष धार्मिक दक्षता के साथ किया गया है।
यह रस्सी से बनी आइटम्स न केवल आंतरिक सजावट में चमक लाते हैं बल्कि आउटडोर डेकोरेशन के लिए भी एक अद्वितीय विकल्प प्रदान करते हैं। इनमें से प्रत्येक आइटम में अपना खास डिज़ाइन और रंग होता है, जिससे यह घर को अद्वितीय बनाता है।
रंजना, जिन्होंने इस अनूठे कला का संचालन किया है, ने बताया कि इन आइटम्स को घर पर बनाना बहुत सरल है। रस्सी से छोटे-छोटे डिजाइन बनाना आसान है और इसका निर्माण उन्होंने आदिकालीन तकनीकों का उपयोग करके किया है।
इस नए आइडिया ने लोगों को छूने का अवसर दिया है और इन बच्चों की मेहनत को तारीफ की जा रही है। रांची के मोराबादी मैदान में लगे दिवाली मेले में इन आइटम्स को खरीदने का मौका मिल रहा है, जो आम लोगों को इस नए और स्वाभाविक शैली के साथ परिचित करा रहा है।
इस मेले में आप मात्र 50 रुपए से शुरू होने वाली कीमतों में इन आइटम्स को खरीद सकते हैं, जिससे यह साबित होता है कि कला का आनंद लेने के लिए अधिकतम खर्च की आवश्यकता नहीं है।
इस नए और आदिकालीन दृष्टिकोण के साथ, ये बच्चे ने एक नये संस्कृति का समर्थन किया है और उन्होंने दिखाया है कि कला हर कोने में हो सकती है, बस आपको उसे पहचानने की आँख रखनी होगी। इस दिवाली में, रस्सी से बने हुए आइटम्स को देखकर लोग नहीं सिर्फ अपने घर को सजाना बल्कि एक नए और विशेष तरीके से खुद को व्यक्त करने का एक नया तरीका भी अपना रहे हैं।