हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में जंगल में आग लगने की घटनाएं बार-बार सामने आ रही हैं और इस बार आग ने एक बुजुर्ग महिला की जान ले ली। 75 वर्षीय निक्की देवी, जो हमीरपुर के बगैतू गांव की निवासी थीं, अपने खेतों में लगी आग को बुझाने की कोशिश कर रही थीं। यह आग जंगल से फैलकर उनके खेतों तक पहुंची थी। निक्की देवी की यह कोशिश उनकी जिंदगी पर भारी पड़ी और वे जिंदा जल गईं। उनका शव पोस्टमार्टम के बाद उनके परिवार को सौंप दिया गया है। हमीरपुर जिले में 15 दिन के भीतर जंगल की आग से मौत की यह दूसरी घटना है। इससे पहले 29 मई को चकमोह क्षेत्र में भी एक महिला की दम घुटने से मौत हो गई थी।
गर्मियों में जंगल की आग की घटनाएं

गर्मी के मौसम में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के सूखे जंगलों में आग लगने की घटनाएं आम हो गई हैं। जंगल की आग न केवल वन संपदा को भारी नुकसान पहुंचाती है, बल्कि इसमें वन्यजीवों की जान भी चली जाती है। कई बार तो आग गांवों और खेतों तक पहुंच जाती है, जिससे जन-जीवन भी प्रभावित होता है। इन घटनाओं से न केवल पर्यावरण को नुकसान होता है, बल्कि स्थानीय लोगों की आजीविका पर भी संकट आ जाता है।
उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में भी हालात खराब
हिमाचल प्रदेश के अलावा उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में भी जंगलों में आग लगने की कई घटनाएं सामने आई हैं। उत्तराखंड में आठ वनकर्मी जंगल की आग बुझाने के प्रयास में झुलस गए, जिनमें से चार की मौत हो गई और बाकी चार गंभीर रूप से घायल हैं। उनका इलाज चल रहा है।

उत्तरकाशी जिले के मोरी ब्लॉक के सालरा गांव में आग लगने से छह व्यक्ति घायल हो गए और एक दर्जन से अधिक मकान जलकर खाक हो गए। आग शार्ट सर्किट की वजह से लगी थी और जल्दी ही आसपास के मकानों में फैल गई। उत्तरकाशी के जिलाधिकारी मेहरबान सिंह बिष्ट ने बताया कि आग में दस रिहायशी मकान पूरी तरह से जलकर क्षतिग्रस्त हो गए और चार अन्य आंशिक रूप से जल गए हैं।
आग बुझाने में आ रही समस्याएं
उत्तरकाशी के जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल ने बताया कि गांव मुख्य सड़क से आठ किलोमीटर दूर है और पानी का निकटस्थ स्रोत भी आधा किलोमीटर की दूरी पर है। इसी कारण दमकल को आग बुझाने में अधिक समय लगा। मौके पर एक मेडिकल टीम, वन विभाग के कर्मी और पशु चिकित्सकों की टीम भी भेजी गई है।
वन विभाग और स्थानीय प्रशासन की चुन
वन विभाग और स्थानीय प्रशासन की चुनौतियाँ
जंगल में आग लगने की घटनाओं से निपटना वन विभाग और स्थानीय प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। इन घटनाओं में कई बार पहुंचने में देरी और आग पर नियंत्रण पाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। पहाड़ी क्षेत्रों में आग बुझाने के लिए पर्याप्त संसाधनों की कमी होती है। कई बार जंगल के अंदरूनी इलाकों में पानी के स्रोत तक पहुंच पाना मुश्किल हो जाता है, जिससे आग पर जल्दी काबू पाना कठिन हो जाता है।
उत्तरकाशी जैसी घटनाओं में देखा गया कि गांव की मुख्य सड़क से दूरी और पानी के निकटस्थ स्रोत का अभाव आग बुझाने में देरी का कारण बना। यह दर्शाता है कि आपदा प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की आवश्यकता है।
आग से निपटने के उपाय
जंगल की आग से निपटने के लिए सरकार और वन विभाग को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
1. समुदाय की भागीदारी स्थानीय समुदायों को जागरूक करना और उन्हें आग बुझाने के प्राथमिक उपायों की जानकारी देना महत्वपूर्ण है। स्थानीय लोगों को आग से निपटने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
2. अत्याधुनिक उपकरण: जंगल की आग बुझाने के लिए अत्याधुनिक उपकरणों और तकनीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। ड्रोन और सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग कर आग की स्थिति की निगरानी और समय पर प्रतिक्रिया संभव है।
3. जल स्रोतों की व्यवस्था: आग बुझाने के लिए जल स्रोतों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए। इसके लिए पहाड़ी क्षेत्रों में वाटर टैंक्स और जलाशयों का निर्माण किया जा सकता है।
4 वन्यजीव सुरक्षा: वन्यजीवों के लिए सुरक्षित मार्ग और शरण स्थलों का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि आग लगने पर वे सुरक्षित स्थान पर पहुंच सकें।
5. अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान: जंगल के अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान कर उन्हें विशेष सुरक्षा दी जानी चाहिए। इन क्षेत्रों में नियमित गश्त और निगरानी की व्यवस्था होनी चाहिए।
महिलाओं की भूमिका और योगदान
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में महिलाओं द्वारा आग बुझाने के प्रयासों को सराहा जाना चाहिए। निक्की देवी की दुखद मृत्यु ने यह स्पष्ट कर दिया है कि महिलाएं भी अपनी सुरक्षा और समुदाय की भलाई के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। महिलाओं को आग बुझाने और आपदा प्रबंधन के लिए विशेष प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध कराना आवश्यक है।
जंगल में आग लगने की घटनाएं न केवल पर्यावरणीय संकट को जन्म देती हैं, बल्कि मानव जीवन और वन्यजीवों के लिए भी खतरा उत्पन्न करती हैं। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में जंगल की आग से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना होगा।
स्थानीय समुदायों की भागीदारी, अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग और वन्यजीव सुरक्षा जैसे उपायों को अपनाकर ही इस संकट से निपटा जा सकता है। महिलाओं की भूमिका और उनके योगदान को मान्यता देकर उन्हें भी इस प्रयास में शामिल करना होगा। इस तरह हम न केवल जंगलों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं से होने वाले नुकसान को भी कम कर सकते हैं।