नीट (NEET) पेपर लीक मामले में एक अप्रत्याशित मोड़ आया जब दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने गलती से गिरफ्तार किए गए गंगाधर गुंडे को जमानत दे दी। यह घटना सीबीआई द्वारा गलत पहचान के आधार पर की गई गिरफ्तारी का परिणाम थी, जिसमें दो व्यक्तियों के एक जैसे नाम होने के कारण गड़बड़ी हो गई थी।
एक जैसे नाम, अलग-अलग पहचान
सीबीआई ने एन. गंगाधर अप्पा के बजाय गंगाधर गुंडे को 30 जून को देहरादून से गिरफ्तार कर लिया था। एन. गंगाधर अप्पा के खिलाफ महाराष्ट्र के लातूर से मामला दर्ज किया गया था और उन्हें बेंगलुरु में गिरफ्तार किया गया था। यह घटना स्पष्ट करती है कि नाम की समानता कितनी बड़ी समस्या बन सकती है, खासकर कानूनी मामलों में।
गिरफ्तारी और हिरासत
गंगाधर गुंडे को 26 जून को देहरादून से गिरफ्तार किया गया था और उन्हें 30 जून तक पुलिस हिरासत में रखा गया। इसके बाद उन्हें 12 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। यह सब तब हुआ जब गंगाधर गुंडे उत्तराखंड से मसूरी जाते समय देहरादून पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए थे।
अदालत में जमानत याचिका
गंगाधर गुंडे के वकील कैलास मोरे ने अदालत में सीबीआई की कार्रवाई का विरोध करते हुए कहा कि एफआईआर में जिस गंगाधर का जिक्र है, वह असल में कोई और है। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल को नीट परीक्षा के बारे में कुछ भी पता नहीं है और उन्हें गलत तरीके से आरोपी बना दिया गया है। वकील ने यह भी बताया कि गंगाधर गुंडे का संजय जाधव से परिचय वैवाहिक विवाद के चलते हुआ था और नीट पेपर लीक मामले में उनका कोई संबंध नहीं है।
असली गंगाधर कौन?
गंगाधर गुंडे के वकील ने स्पष्ट किया कि असली आरोपी एन. गंगाधर अप्पा हैं, जिन्हें बाद में गिरफ्तार किया गया है। सीबीआई ने भी माना कि उनके पास दो गंगाधर हैं और केवल इरन्ना कोंगुलवार ही असली आरोपी की पहचान कर सकता है। इरन्ना कोंगुलवार वर्तमान में फरार आरोपी है।
घटना का प्रभाव
इस घटना ने सीबीआई की कार्यप्रणाली और गिरफ्तारी के मामलों में नाम की समानता को लेकर एक बड़ी चिंता को जन्म दिया है। यह स्पष्ट है कि गलत पहचान के कारण किसी निर्दोष व्यक्ति को जेल में डालना कितना गंभीर हो सकता है। गंगाधर गुंडे की गिरफ्तारी ने न केवल उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि उनके परिवार को भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।
अदालत का निर्णय
अदालत ने गंगाधर गुंडे को जमानत देते हुए सीबीआई की गलती को स्वीकार किया और कहा कि गलत पहचान के कारण उन्हें हिरासत में लिया गया था। यह निर्णय न्याय के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह भी स्पष्ट करता है कि भविष्य में ऐसी गलतियों से बचने के लिए आवश्यक सावधानी बरतनी चाहिए।
गंगाधर गुंडे की गिरफ्तारी और उसके बाद जमानत की घटना ने नीट पेपर लीक मामले में सीबीआई की जांच पर सवाल खड़े किए हैं। यह स्पष्ट है कि गलत पहचान के कारण किसी निर्दोष व्यक्ति को जेल भेजना कितना गंभीर हो सकता है। अदालत का निर्णय एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह भी जरूरी है कि भविष्य में ऐसी गलतियों से बचने के लिए आवश्यक सावधानी बरती जाए। गंगाधर गुंडे की कहानी हमें यह सिखाती है कि न्याय प्रणाली में नाम की समानता को लेकर कितनी गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं और इससे बचने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए।