भारतीय खनिज संसाधनों को लेकर केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और माइनिंग कंपनियों के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद का अंत आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने एक ऐतिहासिक निर्णय में खनिज संपदा पर राज्यों के टैक्स लगाने के अधिकार को मान्यता दी है, जिससे केंद्र और माइनिंग कंपनियों को बड़ा झटका लगा है। यह फैसला उन राज्यों के लिए बड़ी जीत साबित हुआ है जो खनिज संपदा से समृद्ध हैं और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे।
क्या है पूरा मामला?
यह विवाद तब शुरू हुआ जब खनिज संपदा पर टैक्स को लेकर राज्य सरकारें, केंद्र और माइनिंग कंपनियां एक-दूसरे से भिड़ गए। माइनिंग कंपनियों का तर्क था कि राज्य सरकारों को केवल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से टैक्स वसूलने का अधिकार होना चाहिए, जबकि राज्य सरकारें चाहती थीं कि उन्हें पिछली तारीख से टैक्स लेने की अनुमति दी जाए। केंद्र सरकार ने भी इस मुद्दे पर माइनिंग कंपनियों का साथ दिया, जिससे मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने मामले की गहन जांच-पड़ताल के बाद निर्णय लिया कि राज्य सरकारें 1 अप्रैल 2005 से खनिज संपदा पर टैक्स वसूल सकती हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस टैक्स पर कोई ब्याज या जुर्माना नहीं लगेगा, लेकिन राज्यों को 12 वर्षों की अवधि में इस टैक्स को किश्तों में वसूलने का अधिकार होगा।
टैक्स की अवधि और ब्याज की छूट
फैसले के अनुसार, राज्य सरकारें 1 अप्रैल 2005 से 12 साल की अवधि के दौरान टैक्स की मांग कर सकती हैं। इस टैक्स का भुगतान 1 अप्रैल 2026 से शुरू होने वाले वित्त वर्ष से 12 वर्षों की अवधि में किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि 5 जुलाई 2024 से पहले की किसी भी टैक्स की मांग पर राज्य सरकारें कोई ब्याज या जुर्माने की मांग नहीं कर सकतीं।
राज्यों के अधिकारों की मान्यता
यह निर्णय राज्यों के अधिकारों की स्पष्ट मान्यता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्यों को खनिजों के लिए मिलने वाली रॉयल्टी को टैक्स नहीं माना जा सकता। इस संदर्भ में, खनिज संपदा से युक्त ज़मीन पर अलग से टैक्स लगाना राज्यों के अधिकार के दायरे में आता है। यह फैसला न केवल राज्यों की वित्तीय स्थिति को सुदृढ़ करेगा बल्कि उन्हें अपने प्राकृतिक संसाधनों से अधिकतम लाभ प्राप्त करने का अवसर भी प्रदान करेगा।
माइनिंग कंपनियों और केंद्र सरकार के लिए झटका
इस फैसले से माइनिंग कंपनियों और केंद्र सरकार को बड़ा झटका लगा है। माइनिंग कंपनियां जो अब तक टैक्स से बचने का प्रयास कर रही थीं, उन्हें अब बड़ी मात्रा में टैक्स का भुगतान करना होगा। इसके साथ ही, केंद्र सरकार को भी इस फैसले से अपनी नीति में बदलाव करने की जरूरत होगी, क्योंकि अब राज्यों के अधिकारों की अधिक मान्यता दी जा रही है।
फैसले का व्यापक प्रभाव
यह फैसला भारतीय संघीय ढांचे को और मजबूत करता है। राज्यों को खनिज संपदा पर टैक्स लगाने का अधिकार देकर सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि राज्यों के अधिकारों को कमतर नहीं आंका जा सकता। इससे खनिज संपदा वाले राज्यों की आय में वृद्धि होगी और वे अपने विकास कार्यों के लिए अधिक वित्तीय संसाधन जुटा सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला भारतीय संघीय ढांचे को मजबूती प्रदान करता है और खनिज संपदा पर राज्यों के अधिकारों को मान्यता देता है। यह निर्णय न केवल राज्यों की वित्तीय स्थिति को सुदृढ़ करेगा, बल्कि माइनिंग कंपनियों और केंद्र सरकार के लिए भी महत्वपूर्ण सीख का काम करेगा। इस फैसले के बाद राज्यों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए और अधिक सतर्क रहना होगा, ताकि वे अपने प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकें।
यह फैसला भारतीय न्यायपालिका की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में देखा जाएगा, जिसने संघीय ढांचे की रक्षा की है और राज्यों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया है।