बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मुजफ्फरनगर में एक सरकारी स्कूल के शिक्षक द्वारा किए गए एक विवादास्पद बयान ने व्यापक बवाल खड़ा कर दिया है। यह मामला तब प्रकाश में आया जब कुरहनी ब्लॉक के अमरख स्थित सरकारी माध्यमिक विद्यालय के कई छात्रों के परिवारों ने जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) अजय कुमार सिंह के पास एक लिखित शिकायत दर्ज कराई। शिकायत में आरोप लगाया गया था कि शिक्षक हरेंद्र रजक ने छात्रों से कहा कि ‘किसी को भी मोदी को वोट नहीं देना चाहिए’।
जिला शिक्षा अधिकारी अजय कुमार सिंह ने इस शिकायत को गंभीरता से लिया और इसकी जांच शुरू की। जांच में पाया गया कि कई छात्रों ने भी इस बात की पुष्टि की कि शिक्षक रजक कक्षा में ऐसी बातें कह रहे थे। इस बयान को आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन माना गया, क्योंकि किसी भी सरकारी कर्मचारी को किसी भी राजनीतिक दल के पक्ष या विपक्ष में बोलकर चुनाव परिणाम को प्रभावित करने का अधिकार नहीं है।
मुजफ्फरपुर के एसएसपी राकेश कुमार ने इस मामले पर बयान देते हुए कहा कि शिक्षक हरेंद्र रजक पर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने का मामला दर्ज किया गया है। उन्होंने कहा, ‘जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी के बाद टीचर पर चुनाव आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने का मामला दर्ज किया गया है।’
शिकायत में यह भी उल्लेख किया गया कि हरेंद्र रजक ने छात्रों को यह भी कहा कि मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त खाद्यान्न मुफ्त राशन योजना के तहत वितरित किया जा रहा है, इसलिए किसी को भी मोदी को वोट नहीं देना चाहिए। इस बयान के बाद विवाद और भी बढ़ गया और शिक्षा विभाग ने त्वरित कार्रवाई करते हुए शिक्षक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी।
इस मामले ने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न की हैं। कई लोगों का मानना है कि शिक्षक का यह बयान न केवल आचार संहिता का उल्लंघन है, बल्कि यह छात्रों के बीच राजनीतिक पक्षपात को भी बढ़ावा देता है। सरकारी कर्मचारियों को विशेष रूप से चुनावी अवधि में निष्पक्षता बनाए रखने की आवश्यकता होती है, और किसी भी प्रकार की राजनीतिक टिप्पणी को अनुचित माना जाता है।
दूसरी ओर, कुछ लोग यह भी मानते हैं कि शिक्षक ने यह बयान छात्रों के हित में दिया होगा, लेकिन इस तरह के बयानों को कक्षा में करना अनुचित है। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्रों को ज्ञान और नैतिक मूल्यों के साथ शिक्षित करना है, न कि राजनीतिक विचारधाराओं को थोपना। शिक्षक का काम है कि वे छात्रों को स्वतंत्र सोचने और सही निर्णय लेने के लिए प्रेरित करें, न कि अपने विचारों को उन पर थोपें।
इस घटना ने बिहार के शिक्षा विभाग को भी एक बार फिर से सरकारी कर्मचारियों की आचार संहिता और उनके कर्तव्यों के प्रति सजग रहने की आवश्यकता पर जोर देने के लिए प्रेरित किया है। इस प्रकार के मामलों से निपटने के लिए कठोर नीतियों और नियमों का पालन करना आवश्यक है ताकि भविष्य में ऐसे विवादों से बचा जा सके।
इस घटना ने यह भी दर्शाया है कि कैसे एक सरकारी कर्मचारी का असावधान बयान एक बड़े विवाद का कारण बन सकता है और उसे कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है। यह सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए एक सीख है कि वे अपने पद और जिम्मेदारियों का सम्मान करें और किसी भी प्रकार की राजनीतिक टिप्पणी से बचें।
इस प्रकार, बिहार के मुजफ्फरनगर में यह घटना न केवल एक शिक्षक की गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक संदेश देती है कि सरकारी कर्मचारियों को अपनी जिम्मेदारियों का पालन करते हुए निष्पक्ष और तटस्थ रहना चाहिए, विशेषकर चुनावी अवधि में। इसके साथ ही, यह घटना शिक्षा और राजनीति के बीच की सीमाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता को भी उजागर करती है।