दशरथ मांझी, जिन्हें आज ‘माउंटेन मैन’ के नाम से जाना जाता है उनका जीवन कठिनाइयों और संघर्षों से भरा था, लेकिन उनकी प्रेम कहानी और साहस ने उन्हें एक असाधारण व्यक्तित्व बना दिया। उनकी कहानी न केवल प्रेम और समर्पण की है, बल्कि यह एक ऐसे व्यक्ति की भी है जिसने अपने अडिग संकल्प से एक पहाड़ को चीरकर रास्ता बना दिया। यह कहानी है एक व्यक्ति की, जिसने अपनी पत्नी की याद में और अपने गांव के लोगों के लिए ऐसा कार्य किया जिसे सुनकर हर कोई हैरान रह जाता है।
शुरुआती जीवन और परिवार
दशरथ मांझी का जन्म बिहार के गया जिले के एक छोटे से गांव गहलौर में हुआ था। उनका परिवार बेहद गरीब था, और उन्हें कम उम्र में ही धनबाद की कोयले की खदानों में मजदूरी करनी पड़ी। गरीबी और कठिनाइयों ने उनके जीवन को पहले ही संघर्षपूर्ण बना दिया था। बड़े होने पर उन्होंने फाल्गुनी देवी से शादी की, जो उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बन गईं।
त्रासदी जो प्रेरणा बनी
फाल्गुनी देवी, जिन्हें प्यार से ‘फगुनिया’ भी कहा जाता था, दशरथ मांझी के लिए केवल एक पत्नी नहीं थीं, बल्कि उनके जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा भी थीं। एक दिन फाल्गुनी देवी अपने पति के लिए खाना लेकर जा रही थीं, जब वे गहलौर के पहाड़ की चट्टानों के बीच गिर गईं। उस समय गांव में कोई चिकित्सा सुविधा नहीं थी, और अस्पताल पहाड़ के दूसरी ओर था, जो लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर था। इस दूरी के कारण उन्हें समय पर उपचार नहीं मिल सका, और उनकी मौत हो गई।
इस घटना ने दशरथ मांझी के दिल को गहरे रूप से प्रभावित किया। उन्होंने ठान लिया कि वे इस पहाड़ को काटकर रास्ता बनाएंगे, ताकि किसी और को ऐसी त्रासदी का सामना न करना पड़े। उन्होंने अपनी पत्नी की याद में और अपने गांव के लोगों के लिए पहाड़ को काटने का संकल्प लिया।
पहाड़ से संघर्ष: 22 साल का कठिन सफर
दशरथ मांझी ने 1960 में इस पहाड़ को काटने का कार्य शुरू किया। उनके पास कोई आधुनिक उपकरण नहीं थे, केवल एक हथौड़ा और छेनी थी। गांव के लोग उन्हें पागल समझते थे, क्योंकि वे दिन-रात उसी पहाड़ को काटने में लगे रहते थे।
22 वर्षों तक वे लगातार मेहनत करते रहे, और अंततः 1982 में उन्होंने 25 फीट ऊंचा, 30 फीट चौड़ा और 360 मीटर लंबा रास्ता बना दिया। इस रास्ते ने गहलौर से वजीरगंज सहित कई गांवों के बीच की दूरी को 55 किलोमीटर से घटाकर मात्र 15 किलोमीटर कर दिया। यह न केवल उनके प्रेम का प्रतीक था, बल्कि उनके संकल्प और धैर्य का भी प्रमाण था।
‘माउंटेन मैन’ की पहचान और उनकी विरासत
दशरथ मांझी के इस असाधारण कार्य ने उन्हें ‘माउंटेन मैन’ के नाम से प्रसिद्ध कर दिया। उनकी कहानी ने दुनिया भर में लोगों को प्रेरित किया। उनकी इस उपलब्धि के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें सम्मानित किया और उनके योगदान को मान्यता दी। मुख्यमंत्री ने उन्हें जनता दरबार में बुलाकर सम्मानित किया और उनकी कुर्सी पर बैठाकर उन्हें विशेष सम्मान दिया।
दशरथ मांझी की इस असाधारण उपलब्धि को देखने और जानने के लिए देश-विदेश से पर्यटक गहलौर आते हैं। उनके सम्मान में पर्यटन विभाग द्वारा 2019 से ‘माउंटेन मैन दशरथ मांझी महोत्सव’ का आयोजन किया जाता है। उनके स्मारक स्थल पर एक द्वार भी बनाया गया है, जहां लोग उनकी अनोखी लव स्टोरी और साहसिक कार्य की कहानी को जानने आते हैं।
दशरथ मांझी का अंतिम सफर
17/08/2007 को 73 साल की आयु में उनका कैंसर की वजह से निधन हो गया. लेकिन जाते जाते वे आम लोगों के बीच अपने जज्बे और जुनून से ऐसी मिसाल छोड़ कर गए जो सालो-साल तक तमाम लोगों के मन में आशा की किरण जगाएगी. हम सब को दशरथ मांझी से ये सीख लेनी चाहिए कि यदि व्यक्ति वाकई कुछ करने की मन में ठान लें तो जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है. लेकिन लक्ष्य के लिए जोश, जुनून और निरंतरता की जरूरत होती है. उनके निधन के बाद भी उनकी कहानी जीवित है, और वे हमेशा लोगों के दिलों में एक प्रेरणा स्रोत के रूप में बने रहेंगे। उनकी यह कहानी हमें यह सिखाती है कि प्रेम और संकल्प में कितनी शक्ति होती है। उन्होंने न केवल अपनी पत्नी की याद में पहाड़ को चीर डाला, बल्कि उन्होंने अपने गांव के लोगों के लिए भी एक अमूल्य उपहार छोड़ा। उनकी इस कहानी से यह साबित होता है कि अगर किसी के पास अडिग संकल्प और धैर्य हो, तो कोई भी कार्य असंभव नहीं होता।
दशरथ मांझी की जीवन यात्रा हमें यह सिखाती है कि कठिनाइयों से हार मानने की बजाय, हमें अपने संकल्प को मजबूत करना चाहिए और जीवन की हर चुनौती का सामना धैर्य और साहस से करना चाहिए। उनकी कहानी प्रेम, समर्पण और अडिग संकल्प की मिसाल है, जो आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करती रहेगी।
दशरथ मांझी को नई पहचान CM नीतीश कुमार ने दी
दशरथ मांझी को एक नई पहचान दिलाने में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अहम योगदान रहा। जब दशरथ मांझी जनता दरबार में पहुंचे, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें विशेष सम्मान देते हुए अपनी कुर्सी पर बिठाया। इसके बाद, 2019 से पर्यटन विभाग द्वारा ‘माउंटेन मैन दशरथ मांझी महोत्सव’ का आयोजन शुरू किया गया, जिससे मांझी की अनोखी प्रेम कहानी और संघर्ष की प्रेरणादायक गाथा को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आने लगे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके स्मारक स्थल और द्वार भी बनवाए हैं, और उनके परिवार को कई सरकारी योजनाओं का लाभ प्रदान किया गया है।