Article 370 के मामले में होने वाले फैसले के बारे में जानकर सभी देशवासियों को बहुत उत्साह और उत्सुकता है. इस मुद्दे पर 16 दिनों तक चली सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई ने देशभर में बहुत ही बड़ी उत्सुकता और चर्चाएं उत्पन्न की हैं.
इस सुनवाई के दौरान बड़ी दलीलें पेश की गईं हैं, जो इस मुद्दे को समझने में मदद करती हैं. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाने का इंतजार करा रखा है.
इस फैसले के पहले, जम्मू-कश्मीर के नेता और आम लोग दोनों ही बेचैन हैं और वे आशा कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनकी समस्याओं का समाधान करेगा.
सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा काफी टाइट बना रखी गई है और इस समय देश की नजरें सुप्रीम कोर्ट पर हैं. इस सुनवाई के माध्यम से आने वाले बड़े फैसले की बात सुनने के लिए लोग बेताब हैं.
जम्मू-कश्मीर के नेता उमर अब्दुल्ला समेत कई नेताओं ने अपने बयानों में इस मुद्दे का समर्थन और खिलाफ जताया है. उनका कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट से खिलाफत में फैसला आता है, तो भी उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर में शांति भंग नहीं करेगी और कानूनी लड़ाई जारी रखेगी.
सुप्रीम कोर्ट में होने वाले फैसले के पहले, चल रही सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कई बड़ी दलीलें पेश की हैं. इन दलीलों में से कुछ बड़ी बातें जानना बहुत महत्वपूर्ण है.
1. याचिकाकर्ताओं की सबसे बड़ी दलील:
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण दलील प्रस्तुत की है कि अनुच्छेद 370 का सीमित स्वरूप था, और इसका प्रभाव 1957 में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के कार्यकाल समाप्त होने के बाद हो गया। उन्होंने यह तर्क दिया कि संविधान सभा नहीं होने से अनुच्छेद 370 को स्थायी दर्जा मिल गया है। यह भी कहा गया कि जम्मू-कश्मीर संविधान ने अपने संबंधों की रूपरेखा तय की और इसने ब्रिटिश संविधान के बाद भी अपना स्वतंत्रता बनाए रखने का हक बनाए रखा है। याचिकाकर्ताओं ने इस तर्क को बढ़ाकर कहा कि अनुच्छेद 370 ने स्वयं को सीमित करने वाला स्वरूप रखा गया है और इसका प्रभाव समाप्त हो गया है, तथा इस प्रावधान ने स्थायी दर्जा हासिल कर लिया है।
2. क्या 370 को छुआ नहीं जा सकता था?
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इस बात के मूलभूत साक्ष्य हैं कि अनुच्छेद 370 का ‘स्वयं को सीमित करने वाला स्वरूप’ है और ऐसा लगता है कि 1957 में जम्मू कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद यह अपने आप प्रभावी हो गया. इस साक्ष्य के मुताबिक, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का प्रयास करना संविधानिक रूप से संभव नहीं था, चूंकि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त हो गया था.
इस समय, सुप्रीम कोर्ट का फैसला हर किसी के लिए महत्वपूर्ण होगा और इसका देशवासियों पर बड़ा प्रभाव हो सकता है. इसे लेकर हो रही चर्चाएं दिखाती हैं कि लोगों में इस मुद्दे के प्रति बड़ी उत्सुकता है और वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन या खिलाफ जता रहे हैं
3. जब सरकार से सहमती हुआ सुप्रीम कोर्ट:
एक समय ऐसा आया जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस मामले से प्रथम दृष्टि सहमति जताई कि जम्मू-कश्मीर का संविधान भारतीय संविधान के अधीन है। सॉलिसिटर जनरल मेहता ने बताया कि यह स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त सामग्री है कि जम्मू-कश्मीर का संविधान भारत के संविधान के अधीनस्थ है और जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा वास्तव में कानून बनाने वाली विधानसभा थी। इस पर पीठ ने साफ कहा, ‘एक स्तर पर आप सही हो सकते हैं कि भारत का संविधान वास्तव में एक दस्तावेज है जो जम्मू-कश्मीर के संविधान की तुलना में उच्च स्तर पर है।’
4. संविधान सभा को ‘विधान सभा’ किसने किया?
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि प्रावधान को निरस्त करने में संवैधानिक धोखाधड़ी हुई है। इस पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करना आवश्यक था और अपनाई गई प्रक्रिया में कोई खामी नहीं है तो प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अंत साधन को उचित ठहराता हो। साधन को साध्य के अनुरूप होना चाहिए.’ आगे प्रधान न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि उन्हें यह बताना होगा कि आर्टिकल 370 के भाग 2 में मौजूद ‘संविधान सभा’ शब्द को 5 अगस्त 2019 को ‘विधान सभा’ शब्द से कैसे बदल दिया गया, जिस दिन अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को समाप्त किया गया। प्रधान न्यायाधीश ने मेहता से कहा, ‘आपको यह तर्क देना होगा कि यह एक संविधान सभा नहीं बल्कि अपने मूल रूप में एक विधान सभा थी। आपको यह जवाब देना होगा कि यह अनुच्छेद 370 के खंड 2 के साथ कैसे मेल खाएगा जो विशेष रूप से कहता है प्रधान न्यायाधीश ने मेहता से कहा, ‘हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अंत साधन को उचित ठहराता हो। साधन को साध्य के अनुरूप होना चाहिए।’
5. चीफ जस्तिस की वो बड़ी बात:
अगस्त में सुनवाई के 11वें दिन भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आर्टिकल 35A को लागू करने से समानता, देश के किसी भी क्षेत्र में नौकरी करने की स्वतंत्रता और अन्य मौलिक अधिकार छीन लिए गए थे। इससे पहले केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस विवादास्पद प्रावधान का उल्लेख करते हुए कहा था कि यह केवल पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार देता है और यह भेदभावपूर्ण है।
6. 370 पर ब्रेग्जिट जैसा जनमत संग्रह हो?
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील रखी कि संविधान के आर्टिकल 370 को निरस्त करना ब्रेग्जिट की तरह एक राजनीतिक कृत्य था, जहां ब्रिटिश नागरिकों की राय जनमत संग्रह के माध्यम से प्राप्त की गई थी। उन्होंने कहा कि जब पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था तब ऐसा नहीं था।
7. विलय के साथ संप्रभुता का सवाल
अगस्त में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि 1947 में जम्मू-कश्मीर का भारत से विलय हो गया था और इससे संप्रभुता का समर्पण पूर्ण हुआ था. इसके बावजूद, संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा मिला था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह मान्यता नहीं दी कि इसके बाद भी संप्रभुता के कुछ तत्व बरकरार रहे हों.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 1 में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि भारत जम्मू और कश्मीर सहित राज्यों का एक संघ होगा, जिससे संप्रभुता का हस्तांतरण हो गया है. इससे यह सिद्ध होता है कि जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता पूर्णतः भारत के हक में समर्पित हो गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने आरोप लगाए गए विधायिका के साथ यह भी कहा कि अनुच्छेद 370 के बाद भी जम्मू-कश्मीर में संप्रभुता के कुछ तत्व बरकरार नहीं रखे गए थे और उसे विशेष दर्जा देना विधायिका के खिलाफ था।
इस सुनवाई के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने यह बताया कि भारत सरकार को जम्मू-कश्मीर में संप्रभुता के किसी भी संकेत को मान्यता नहीं देने का स्वरूपनिर्धारित था और इससे संविधान में समानता और न्याय की प्राथमिकता को बढ़ावा मिलता है।