बांग्लादेश में हाल ही में हुए हिंसक प्रदर्शन ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस स्थिति ने प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया। सरकारी नौकरियों में आरक्षण कोटा के खिलाफ छात्र आंदोलन ने इतनी विकराल रूप ले ली कि हिंसा में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई और हजारों लोग घायल हो गए। आइए, जानते हैं इस हिंसा के पीछे की वजह, इसकी शुरुआत और अब तक क्या-क्या हुआ।
विरोध की शुरुआत
बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में कोटा प्रणाली को लेकर छात्र विरोध प्रदर्शन की शुरुआत पिछले महीने हुई थी। यह आंदोलन सरकारी नौकरियों में आरक्षित कोटा के खिलाफ था। छात्रों का मानना था कि यह कोटा प्रणाली प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्तारूढ़ पार्टी, अवामी लीग के वफादारों को अनुचित लाभ पहुंचा रही है। इस आंदोलन ने जल्दी ही एक बड़े राजनीतिक आंदोलन का रूप ले लिया।
हिंसा का फैलाव
शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन ने जल्दी ही हिंसक रूप ले लिया। सरकारी नौकरियों में आरक्षित कोटा के खिलाफ छात्रों का विरोध प्रदर्शन इतना बढ़ गया कि राजधानी ढाका सहित अन्य प्रमुख शहरों में भी हिंसा फैल गई। स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि सेना को हस्तक्षेप करना पड़ा। हिंसा के दौरान कम से कम 300 लोग मारे गए और हजारों लोग घायल हो गए।
पीएम शेख हसीना का देश छोड़ना
हिंसा के बढ़ते स्तर को देखते हुए पीएम शेख हसीना ने देश छोड़ने का फैसला किया। उन्होंने इस्तीफा दे दिया और सेना के हेलीकॉप्टर के जरिए देश से निकल गईं। जानकारी के मुताबिक, शेख हसीना ने भारत में शरण ली है। सेना ने स्थिति को नियंत्रण में लेने के लिए अनिश्चितकालीन प्रतिबंध लगा दिया है और अंतरिम सरकार बनाने की घोषणा की है।
पाकिस्तान और ISI की भूमिका
इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के अनुसार, प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा, छात्र शिबिर, जो पाकिस्तान की आईएसआई द्वारा समर्थित है, ने देश में हिंसा भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका उद्देश्य प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को अस्थिर करना और विपक्षी बीएनपी को सत्ता में बहाल करना था। यह कोई नई बात नहीं है कि बांग्लादेश की हसीना सरकार को कमजोर करने के लिए आईएसआई के प्रयास नए नहीं हैं।
सरकार और विपक्ष के बीच संघर्ष
प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार के खिलाफ बढ़ते असंतोष ने छात्रों के आंदोलन को और भी भड़काया। विरोध प्रदर्शन के दौरान, सरकार ने कर्फ्यू लगाया, स्कूलों और विश्वविद्यालयों को बंद कर दिया और इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया। बावजूद इसके, हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही थी।
सेना की भूमिका
हिंसा की स्थिति को देखते हुए सेना ने हस्तक्षेप किया और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की। पूर्व सेना प्रमुख जनरल इकबाल करीम भुइयां ने भी सरकार की आलोचना की और सेना की वापसी का आह्वान किया। वर्तमान सेना प्रमुख ने प्रदर्शनकारियों के प्रति समर्थक रुख अपनाया, जिससे अशांति और बढ़ गई।
न्यायपालिका का फैसला
21 जुलाई को बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी कोटा फिर से शुरू करने के खिलाफ फैसला सुनाया। इस फैसले को आलोचकों ने हसीना की सरकार के साथ गठबंधन के रूप में देखा। हालांकि, इस फैसले ने “स्वतंत्रता सेनानियों” के बच्चों के लिए नौकरी आरक्षण को समाप्त करने की प्रदर्शनकारियों की मांगों को संतुष्ट नहीं किया।
विरोध की महत्वपूर्ण तिथियां
1. 1 जुलाई: विश्वविद्यालय के छात्रों ने कोटा प्रणाली में सुधार की मांग को लेकर नाकेबंदी शुरू की और सड़कों के साथ रेलवे लाइनों को भी बाधित किया।
2. 16 जुलाई: ढाका में प्रदर्शनकारियों और सरकार समर्थकों के बीच झड़प के बाद हिंसा बढ़ी और छह लोगों की पहली बार दर्ज की गई मौत हुई।
3. 18 जुलाई: हसीना की शांति अपील को खारिज कर प्रदर्शनकारियों ने उनके इस्तीफे की मांग की। सरकारी इमारतों और बांग्लादेश टेलीविजन के मुख्यालय को आग लगा दी गई।
4. 21 जुलाई: सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी कोटा फिर से शुरू करने के खिलाफ फैसला सुनाया, लेकिन इससे प्रदर्शनकारियों की मांगें पूरी नहीं हुईं।
बांग्लादेश में छात्र आंदोलन ने एक बड़े राजनीतिक संकट का रूप ले लिया है। प्रधानमंत्री शेख हसीना का देश छोड़ना और सेना का हस्तक्षेप यह दर्शाता है कि स्थिति कितनी गंभीर हो चुकी है। पाकिस्तान और ISI की भूमिका, सरकार और विपक्ष के बीच संघर्ष, और न्यायपालिका के फैसले ने इस स्थिति को और जटिल बना दिया है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले दिनों में बांग्लादेश की स्थिति कैसे बदलती है और देश इस संकट से कैसे उबरता है।