लोकसभा चुनाव 2024 के छठे चरण में मतदान के दौरान उम्मीदवारों की संपत्ति को लेकर चर्चा जोर पकड़ रही है। इस चरण में चुनाव लड़ रहे कुल 866 उम्मीदवारों में से 39 प्रतिशत करोड़पति हैं, लेकिन वहीं कुछ उम्मीदवार ऐसे भी हैं जिनके पास बेहद कम संपत्ति है। यह लोकतंत्र की खासियत है कि कोई भी नागरिक, चाहे उसकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो, चुनाव में हिस्सा ले सकता है।
हरियाणा के रोहतक लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार मास्टर रणधीर सिंह की संपत्ति की चर्चा हर ओर हो रही है। उन्होंने अपने हलफनामे में कुल संपत्ति महज दो रुपये घोषित की है। यह बात हैरान करने वाली जरूर है, लेकिन इससे यह भी स्पष्ट होता है कि भारतीय लोकतंत्र में सभी को समान अवसर मिलता है। मास्टर रणधीर सिंह के पास इतनी कम संपत्ति है कि वे अपने पैसे से एक कप चाय भी नहीं खरीद सकते। यह स्थिति हमें यह भी सोचने पर मजबूर करती है कि हमारे समाज में आर्थिक असमानता कितनी गहरी है।
मास्टर रणधीर सिंह के बाद उत्तर प्रदेश की प्रतापगढ़ लोकसभा सीट से एसयूसीआई (सी) के उम्मीदवार राम कुमार यादव का नंबर आता है। उन्होंने अपनी कुल संपत्ति 1,686 रुपये घोषित की है। गरीबी के मामले में तीसरे स्थान पर उत्तर पश्चिम दिल्ली सीट से बीएसएसएसएसपी के उम्मीदवार खिलखिलकर हैं, जिन्होंने अपनी कुल संपत्ति दो हजार रुपये बताई है। इसी तरह, चौथे स्थान पर उत्तर पश्चिम दिल्ली से ही वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल के नंद राम बागरी हैं, जिन्होंने अपनी कुल संपत्ति भी दो हजार रुपये बताई है। ओडिशा की पुरी सीट से निर्दलीय प्रत्याशी दिलीप कुमार बराल ने अपनी कुल संपत्ति के तौर पर 4032 रुपये घोषित की है, जिससे वे पांचवे स्थान पर हैं।
इन उम्मीदवारों की संपत्ति के मुकाबले, छठे चरण में कई करोड़पति उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहे हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार नवीन जिंदल इस सूची में सबसे आगे हैं। उन्होंने कुल 1,241 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की है। उनके बाद दूसरे और तीसरे स्थान पर कटक से बीजेडी प्रत्याशी संतरूप मिश्रा की 482 करोड़ रुपये और कुरुक्षेत्र से आप प्रत्याशी सुशील गुप्ता की 169 करोड़ रुपये है। हिसार से जेजेपी प्रत्याशी नैना सिंह चौटाला 139 करोड़ रुपये की कुल संपत्ति के साथ चौथे स्थान पर और गुरुग्राम से बीजेपी प्रत्याशी राव इंद्रजीत सिंह 121 करोड़ रुपये की कुल संपत्ति के साथ पांचवें स्थान पर हैं।
यह अंतर स्पष्ट रूप से दिखाता है कि हमारे समाज में आर्थिक विषमता कितनी गहरी है। एक ओर जहां कुछ उम्मीदवार अरबों की संपत्ति के मालिक हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ उम्मीदवारों के पास जीविका चलाने के लिए भी पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। यह स्थिति यह सवाल उठाती है कि क्या हमारा चुनावी तंत्र वास्तव में सभी को समान अवसर प्रदान कर रहा है?
हालांकि, यह भी सच है कि चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार के लिए 95 लाख रुपये तक खर्च करने की छूट दी है। ऐसे में, सवाल यह उठता है कि आर्थिक रूप से कमजोर उम्मीदवार अपने चुनाव प्रचार को कैसे प्रभावी बना पाएंगे? क्या उनके पास इतने संसाधन हैं कि वे अपनी आवाज को जनता तक पहुंचा सकें?
इस मुद्दे पर विचार करना बेहद जरूरी है क्योंकि लोकतंत्र का असली मतलब तभी पूरा होता है जब हर नागरिक, चाहे वह गरीब हो या अमीर, अपनी बात को खुलकर रख सके और चुनावी प्रक्रिया में भागीदारी कर सके। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करना चाहिए कि आर्थिक स्थिति किसी भी उम्मीदवार के लिए बाधा न बने।
अंततः, यह कह सकते हैं कि भारतीय लोकतंत्र की ताकत उसकी विविधता और समावेशिता में है। यहां कोई भी व्यक्ति, चाहे उसकी संपत्ति कितनी भी कम हो, चुनाव लड़ सकता है और अपने विचार जनता के सामने रख सकता है। लेकिन हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह समावेशिता वास्तविकता में भी बनी रहे और सभी उम्मीदवारों को समान अवसर मिल सके। इससे ही हमारा लोकतंत्र और मजबूत और सशक्त बनेगा।