नदियों, तालाबों, जलाशयों पर कब्जा कर लेने वाली जलकुंभियां जिसे हम वाटरक्रेस के नाम से जानते हैं, इसे अभिशाप माना जाता है। अक्सर आपने देखा होगा कि तलाब में पानी के सतह पर ये हरी जलकुंभी की पत्तियां दिखाई देती रहती हैं, जिसे उखाड़कर फेंक दिया जाता है। लेकिन झारखंड के एक पर्यावरण वैज्ञानिक गौरव आनंद ने इस जलकुंभी के जरिए ऐसी चीज बना दी, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है।
नमामि गंगे मिशन से जुड़ककर मिला जीवन का लक्ष्य
हम बात कर रहे हैं झारखंड के पर्यावरण वैज्ञानिक गौरव आनंद के बारे में। उन्होंने अभिशाप मानी जाने वाली इस जलकुंभी को वरदान बना दिया। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि गौरव आनंद इस जलकुंभी के जरिए साड़ियां बना रहे हैं। 46 वर्षीय गौरव आनंद जमशेदपुर में टाटा स्टील यूटिलिटीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज में अच्छे पैकेज वाली नौकरी कर रहे थे। इसी के साथ वह काफी वर्षों से पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं का भी समाधान कर रहे थे। गौरव ने साल 2018 में केंद्र सरकार के नमामि गंगे मिशन से जुड़ककर करीब एक साल तक गंगा नदी की सफाई भी की। इसी अभियान से जुड़कर गौरव को उनके जीवन का लक्ष्य मिल गया।
जलकुंभी से बनाई साड़ियां
दरअसल, सफाई के दौरान उन्होंने देखा कि ज्यादातर जलाशय जलकुंभी से ही भरे हुए हैं। ऐसे में उन्होंने इस जलकुंभी को किसी काम के लिए इस्तेमाल करने के बारे में सोचा। फिर उन्होंने जलकुंभी के बारे में रिसर्च की और उसमें पाया कि इसमें सेल्युलोज पाया जाता है। फिर उन्होंने जलकुंभी में से फाइबर निकालने का काम शुरू कर दिया। फिर एक दिन आख़िरकार उन्होंने तमाम कारीगरों के साथ मिलकर फाइबर को कपास के साथ मिलाकर हैंडलूम साड़ियां बनाने में सफलता हासिल की। अब गौरव आनंद के साथ करीब 500 महिलाएं साड़ी बनाने का काम करती हैं। इन फ्यूजन साड़ी की कीमत दो से साढ़े तीन हजार रुपये के बीच रखी गई।