कारगिल की लड़ाई भारतीय सेना के पराक्रम और साहस का प्रतीक है। हर साल 26 जुलाई को भारत कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाता है, जो उस दिन की याद दिलाता है जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे से कारगिल की पहाड़ियों को मुक्त कराया था। इस वर्ष, कारगिल विजय के 25 साल पूरे होने पर, देश ने रजत जयंती मनाई। इस मौके पर, कारगिल युद्ध के हीरो कर्नल बलवान सिंह ने अपने अनुभव और कुछ दिलचस्प किस्सों को साझा किया।
कारगिल की लड़ाई की शुरुआत
कर्नल बलवान सिंह ने बताया कि 15 मई को भारतीय सेना को खबर मिली कि कुछ मुजाहिद्दीन द्रास की चोटियों पर आकर बैठ गए हैं। उन्हें खदेड़ने के लिए सेना को आदेश मिला। मुजाहिद्दीन तोलोलिंग और टाइगर हिल की चोटियों पर बैठे थे। सेना ने मानसबल से मूवमेंट शुरू की और सोनामर्ग से होते हुए द्रास पहुंची। कर्नल बलवान सिंह ने बताया कि वे मार्च 6 को कमीशन हुए थे और सर्विस करते हुए उन्हें मात्र 3 महीने ही हुए थे। उन्होंने 18 ग्रेनेडियर्स में 48 चेन्नई से कमीशन प्राप्त करके ज्वाइन किया था। जब वे द्रास पहुंचे, तो दुश्मन की शेलिंग नेशनल हाईवे पर हो रही थी। सेना ने मतैन में हेडक्वार्टर और कंपनी को स्थापित किया और इसके बाद 24 दिन तक तोलोलिंग की लड़ाई लड़ी।
तोलोलिंग पर विजय
कर्नल बलवान सिंह ने कहा कि तोलोलिंग पर जीत हासिल करने के बाद सेना को काफी नुकसान हुआ। 2 अफसर, 2 जेसीओ और 25 अन्य रैंक के जवान शहीद हुए थे। इसके बाद उन्हें टाइगर हिल को जीतने का आदेश मिला। टाइगर हिल 7500 फीट ऊंचा था और वहां कोई कवर नहीं था। यानी निर्जन पहाड़ थे, जहां तापमान हमेशा माइनस में बना रहता था। उन्होंने कहा कि जब सेना ने हमला किया, तो मौसम बहुत खराब था। उस समय उन्हें केवल दुश्मन से नहीं बल्कि मौसम से भी लड़ना था। जहां दुश्मन बैठा था, वहां तक पहुंचने में उन्हें 12 घंटे लगे।
टाइगर हिल पर हमला
कर्नल बलवान सिंह ने बताया कि उन्होंने पहाड़ों से जुड़े उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए टाइगर हिल के पीछे से चढ़ाई की और टॉप पर एक फुट होल्ड बनाया। दुश्मन के साथ वहां उनकी हैंड टू हैंड फाइट हुई, जिसमें 6 जवान शहीद हुए और 6 घायल हुए। इस संघर्ष में कर्नल बलवान सिंह भी घायल हुए। एक गोली उनके हाथ और एक गोली उनके पैर में लगी। जोगेंद्र यादव को 10-12 गोलियां हाथ में लगी थीं। उनकी राइफल हाथ से गिर गई थी, लेकिन उन्होंने दुश्मन की राइफल उठाई और फायरिंग शुरू की। इस दौरान भारतीय सेना ने 25 पाकिस्तानी सैनिकों को मार भगाया और कारगिल की चोटी पर भारतीय झंडा फहराया।
भारतीय जवानों का मनोबल
कर्नल बलवान सिंह ने बताया कि जब टाइगर हिल पर भारतीय सेना ने फुटहोल्ड बनाया, तो मीडिया में यह खबर आ गई थी कि भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया है। सेना को टास्क मिला था कि कारगिल को कैप्चर करना है। तोलोलिंग से जो सीखा, उसी के आधार पर टाइगर हिल पर झंडा फहराया। टाइगर हिल को कब्जा करना बहुत ही जरूरी था। सेना की ट्रेनिंग में सिखाया जाता है कि भारतीय सेना, रेजिमेंट की इज्जत और देश सर्वोपरि है।
बदला लेने की भावना
कर्नल बलवान सिंह ने कहा कि भारतीय जवानों का मनोबल बहुत ऊंचा था। उन्हें अपने देश की इज्जत और कारगिल को जीतना था। जवानों को बदला चाहिए था, क्योंकि दुश्मन ने उनके देश की भूमि पर कब्जा कर रखा था। उनके जवानों का हौसला इतना बढ़ा हुआ था कि वे किसी भी स्थिति में हार मानने के लिए तैयार नहीं थे।
कारगिल की लड़ाई ने भारतीय सेना की बहादुरी और देशभक्ति का अद्वितीय उदाहरण पेश किया है। कर्नल बलवान सिंह जैसे वीर सैनिकों ने अपने अदम्य साहस और शौर्य से देश को गर्व महसूस कराया। उनकी कहानियां और अनुभव आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। देश ने अपने वीर सैनिकों के बलिदान को हमेशा याद रखा है और उनकी वीरता को सलाम किया है। कारगिल विजय दिवस उन सभी वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि देने का दिन है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। कर्नल बलवान सिंह के किस्से और उनकी बहादुरी हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे।