नागोर्नो-काराबाख विवाद एक दुर्भाग्यपूर्ण गतिरोध है जो अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच चल रहा है, और इसके परिणामस्वरूप यह इलाका खाली हो रहा है। इस विवाद का मुख्य कारण नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र की जातीय और धार्मिक भिन्नताओं पर आधारित आर्मीनियाई और आजरबैजानी समुदायों के बीच ज़मीनी और आराजकता के मुद्दों पर आधारित है।
नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र एक स्वतंत्र अलगवावादी क्षेत्र है जो कि अजरबैजान के अंदर स्थित है, लेकिन आर्मेनियाई जनसंख्या के अधिकांश का सहायकरूप से आर्मेनियाई आबादी है। यह क्षेत्र 1994 में अलगवावादी लड़ाई के बाद आर्मीनियाई समर्थन से आर्मीनियाई सेना के नियंत्रण में आ गया था।
2020 में, अजरबैजान ने नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को पुनर्नियंत्रित करने के लिए आक्रमण किया और नागोर्नो-काराबाख के आसपास के क्षेत्रों को भी अपने कब्ज़े में लिया। इसके परिणामस्वरूप, नागोर्नो-काराबाख की अलगवावादी सरकार ने खुद को भंग करने का ऐलान किया और समझौते के तहत अजरबैजान को क्षेत्र के निवासियों की स्वतंत्र, स्वैच्छिक और बिना रोकटोक आवाज़ाही की अनमुति देने के लिए सहमत हो गई। इसके बदले में, आर्मीनिया में स्थायी सैनिकों को उनके हथियार सौंपने की अनमुति देने का समझौता हुआ।
इस समय तक, नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र से लगभग 70% मूल आबादी ने पलायन कर लिया है, और इस इलाके में खाली जगहें पाए जा रही हैं। इसके पीछे का कारण है आक्रमण और समझौते के अधीन अजरबैजान की आक्रामक कार्रवाई, जिसके चलते लोग अपनी सुरक्षा और जीवन के खतरों से बचने के लिए पलायन कर रहे हैं।
इस विवाद का समाधान एक चुनौतीपूर्ण काम है, और इसके प्रभाव सीमाओं के पार फैल सकते हैं। इसे निष्पक्षता और दिप्लोमेसी के माध्यम से सुलझाना जरूरी है ताकि इस इलाके के निवासियों को सुरक्षित रूप से वापस जीवन बिताने का मौका मिल सके।