भारत में सरकारी नौकरियों को लेकर राजनीतिक बहसें अक्सर गरमा जाती हैं, और हाल ही में एक बार फिर से ऐसी ही बहस छिड़ गई है। इस बार चर्चा का केंद्र है ‘लेटरल एंट्री’—एक ऐसा तरीका जिसमें विशेषज्ञों को सीधे ऊंचे पदों पर नियुक्त किया जाता है। लेटरल एंट्री को लेकर विपक्षी दलों और एनडीए घटक दलों के बीच विवाद गहराता जा रहा है। यह विवाद तब उभर कर सामने आया जब संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के 45 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया।
लेटरल एंट्री का अर्थ और महत्व
लेटरल एंट्री को सीधी भर्ती भी कहा जाता है, जहां विशेषज्ञों को सीधे सरकारी सेवाओं में शामिल किया जाता है। यह भर्ती प्रक्रिया उन व्यक्तियों के लिए होती है जो किसी विशेष क्षेत्र में माहिर होते हैं, लेकिन जिन्होंने पारंपरिक IAS या अन्य सरकारी सेवाओं के माध्यम से प्रवेश नहीं किया होता। मोदी सरकार ने 2018 में औपचारिक रूप से इस प्रणाली को अपनाया था। इसके तहत तीन से पांच साल के अनुबंध पर विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है, जिसे उनके प्रदर्शन के आधार पर आगे भी बढ़ाया जा सकता है।
लेटरल एंट्री का मकसद नौकरशाही में विशेषज्ञता लाना और सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करना है। उदाहरण के लिए, यदि किसी मंत्रालय को किसी विशिष्ट तकनीकी क्षेत्र में विशेषज्ञता की आवश्यकता है, तो लेटरल एंट्री के माध्यम से उस क्षेत्र के विशेषज्ञ को नियुक्त किया जा सकता है। यह कदम सरकार की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
लेटरल एंट्री पर राजनीतिक विवाद क्यों?
हाल ही में UPSC द्वारा 45 पदों के लिए निकाले गए विज्ञापन ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव जैसे विपक्षी नेताओं ने इस भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण न होने पर सवाल खड़े किए हैं। राहुल गांधी ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया, और एनडीए के घटक दलों ने भी इस विवाद में अपनी आवाज मिलाई।
एनडीए के प्रमुख घटक दल, जैसे लोजपा (रामविलास) के नेता चिराग पासवान और जेडीयू के नेता केसी त्यागी, ने लेटरल एंट्री में आरक्षण की मांग की है। चिराग पासवान ने कहा कि जहां भी सरकारी नियुक्तियां होती हैं, वहां आरक्षण का पालन अनिवार्य होना चाहिए। उनके अनुसार, आरक्षण का प्रावधान एससी, एसटी और ओबीसी के लिए हर सरकारी नियुक्ति में लागू होना चाहिए, चाहे वह पारंपरिक भर्ती हो या लेटरल एंट्री के माध्यम से हो।
लेटरल एंट्री और आरक्षण: एक जटिल मुद्दा
लेटरल एंट्री में आरक्षण लागू करने का मुद्दा जटिल है। पारंपरिक भर्ती प्रक्रियाओं में आरक्षण का प्रावधान संविधान द्वारा सुरक्षित है, लेकिन लेटरल एंट्री में यह प्रावधान नहीं है। लेटरल एंट्री में आमतौर पर उन विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है, जिन्होंने अपनी फील्ड में उल्लेखनीय कार्य किया हो, लेकिन जिन्होंने पारंपरिक सरकारी सेवाओं के माध्यम से प्रवेश नहीं किया होता।
विपक्षी दलों का कहना है कि लेटरल एंट्री में आरक्षण लागू न करने से सामाजिक न्याय की अवधारणा को ठेस पहुंचती है। वहीं, मोदी सरकार का तर्क है कि लेटरल एंट्री का उद्देश्य विशेषज्ञता लाना है, और इस प्रक्रिया को आरक्षण के दायरे में लाने से उसकी मूल भावना कमजोर हो सकती है। सरकार का यह भी कहना है कि आरक्षण की जरूरत को पूरा करने के लिए पारंपरिक भर्ती प्रक्रियाएं पहले से मौजूद हैं।
एनडीए में असहमति और समर्थन
लेटरल एंट्री के मुद्दे पर एनडीए में भी असहमति देखने को मिल रही है। जहां लोजपा और जेडीयू जैसे दल आरक्षण की मांग कर रहे हैं, वहीं टीडीपी (तेलुगू देशम पार्टी) ने केंद्र सरकार का समर्थन किया है। टीडीपी महासचिव नारा लोकेश का कहना है कि लेटरल एंट्री के माध्यम से विशेषज्ञों की भर्ती सरकार की नीतियों को और अधिक कुशल बना सकती है।
मोदी सरकार का कदम और भविष्य की दिशा
लेटरल एंट्री को लेकर उभरे राजनीतिक विवाद और बढ़ते दबाव के बीच, मोदी सरकार ने हाल ही में इस भर्ती प्रक्रिया को रोकने का फैसला किया। UPSC के विज्ञापन पर रोक लगा दी गई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि सरकार इस मुद्दे पर पुनर्विचार कर सकती है। सरकार लेटरल एंट्री में आरक्षण लागू करने पर विचार कर रही है, जो इस विवाद को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
लेटरल एंट्री पर छिड़ी राजनीतिक बहस भारतीय राजनीति में नौकरशाही और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन के मुद्दे को उजागर करती है। एक ओर जहां लेटरल एंट्री को विशेषज्ञता लाने के लिए आवश्यक माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इसे सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत भी देखा जा रहा है। यह विवाद आने वाले समय में भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना रह सकता है, और इसके परिणामस्वरूप सरकार को नई नीतियों और प्रक्रियाओं को अपनाने पर विचार करना पड़ सकता है।