नेपाल की सियासी स्थिति में एक बार फिर से बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने नई सरकार बनाने का दावा पेश किया है। यह घटनाक्रम तब सामने आया जब वर्तमान प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ संसद में विश्वास मत हासिल करने में असफल रहे। शुक्रवार को हुए इस घटनाक्रम के बाद नेपाल की राजनीति में एक नई दिशा का संकेत मिल रहा है।
विश्वास मत में प्रचंड की हार
नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ को संसद में विश्वास मत हासिल करने में असफलता का सामना करना पड़ा। प्रचंड, जो कि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-माओइस्ट सेंटर (सीपीएन-एमसी) के अध्यक्ष हैं, संसद में विश्वास मत हासिल करने के लिए 138 वोटों की आवश्यकता थी, लेकिन उन्हें केवल 63 वोट मिले, जबकि उनके विरोध में 194 वोट पड़े। 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 258 सदस्यों ने मतदान में भाग लिया, जबकि एक सदस्य अनुपस्थित रहा।
केपी शर्मा ओली का दावा
इस विश्वास मत हार के बाद, सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल के समक्ष 165 सांसदों के समर्थन से नई सरकार बनाने का दावा पेश किया। ओली ने बताया कि उनके पास उनकी पार्टी के 77 सांसद और नेपाली कांग्रेस के 88 सांसदों का समर्थन है। यह समर्थन संख्या संसद में बहुमत के लिए पर्याप्त है, जिससे ओली के नेतृत्व में नई सरकार के गठन की संभावना बढ़ गई है।
सरकार से समर्थन वापस लेना
पिछले सप्ताह सीपीएन-यूएमएल ने प्रचंड के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। यह निर्णय सीपीएन-यूएमएल और नेपाली कांग्रेस के बीच सत्ता-साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद लिया गया था। यह समझौता प्रचंड के नेतृत्व वाली सरकार को अपदस्थ करने और नई गठबंधन सरकार बनाने के लिए किया गया था। समझौते के अनुसार, ओली और देउबा प्रतिनिधि सभा की शेष अवधि के दौरान बारी-बारी से प्रधानमंत्री पद साझा करेंगे। पहले चरण में ओली डेढ़ साल के लिए प्रधानमंत्री बनेंगे और उसके बाद बाकी अवधि के लिए देउबा प्रधानमंत्री रहेंगे।
नया सत्ता-साझेदारी फॉर्मूला
नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा पहले ही अगले प्रधानमंत्री के रूप में ओली का समर्थन कर चुके हैं। देउबा और ओली ने प्रचंड के नेतृत्व वाली सरकार को अपदस्थ करने और नई गठबंधन सरकार बनाने के लिए सोमवार को सात सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के तहत ओली और देउबा बारी-बारी से प्रधानमंत्री पद संभालेंगे। यह सत्ता-साझेदारी फॉर्मूला नेपाल की राजनीति में एक नई दिशा का संकेत है और इसे नेपाल के राजनीतिक स्थायित्व के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
राजनीतिक अस्थिरता का दौर
नेपाल की राजनीति में बार-बार सरकार बदलना और गठबंधन टूटना कोई नई बात नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में नेपाल ने कई बार राजनीतिक अस्थिरता का सामना किया है। विभिन्न दलों के बीच सत्ता-साझेदारी और विश्वास मत के मुद्दे पर कई बार सरकारें गिरी हैं और नई सरकारें बनी हैं। इससे नेपाल के विकास कार्यों पर भी असर पड़ा है और जनता में असंतोष बढ़ा है।
नई सरकार की चुनौतियाँ
यदि केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में नई सरकार बनती है, तो उनके सामने कई चुनौतियाँ होंगी। देश की आर्थिक स्थिति, कोरोना महामारी के बाद की स्थिति, रोजगार के अवसर, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार, और नेपाल-भारत संबंध जैसे मुद्दे उनके लिए प्राथमिकता होंगे। इसके अलावा, गठबंधन सरकार होने के कारण उन्हें विभिन्न दलों के बीच सामंजस्य बनाए रखने और स्थिरता सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता होगी।
नेपाल में एक बार फिर से सत्ता परिवर्तन की स्थिति बन रही है। पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने नई सरकार बनाने का दावा पेश किया है और उनके पास 165 सांसदों का समर्थन है। इस घटनाक्रम ने नेपाल की राजनीति में एक नई दिशा का संकेत दिया है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि नई सरकार के गठन के बाद नेपाल की राजनीतिक स्थिति में क्या बदलाव आते हैं और देश की चुनौतियों का सामना कैसे किया जाता है। नेपाल की जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगाहें अब ओली के नेतृत्व में बनने वाली नई सरकार पर टिकी हुई हैं।