बिहार की राजनीति में इन दिनों सियासी उठापटक का दौर जारी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भारतीय जनता पार्टी (BJP) से बढ़ती नाराजगी और उनके साथी दल जनता दल यूनाइटेड (JDU) के फैसलों ने राज्य में राजनीतिक भूचाल ला दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि नीतीश कुमार कभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साथ छोड़ सकते हैं। यह सवाल उठता है कि आखिरकार वे कौन से बड़े कारण हैं जिनकी वजह से नीतीश कुमार और BJP के बीच दरार बढ़ती जा रही है। आइए, इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।
ईडी की छापेमारी और नीतीश कुमार की नाराजगी
नीतीश कुमार की नाराजगी का पहला बड़ा कारण हाल ही में ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) द्वारा की गई छापेमारी है। ईडी की टीम ने पटना, अमृतसर, दिल्ली, चंडीगढ़ और पुणे के 20 ठिकानों की तलाशी ली, जिसमें बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी संजीव हंस भी शामिल थे। संजीव हंस को नीतीश कुमार का बेहद करीबी माना जाता है, और उनके घर से ईडी ने 1100 ग्राम सोना बरामद किया है। इस छापेमारी के कारण नीतीश कुमार और BJP के बीच रिश्ते और तनावपूर्ण हो गए हैं।
विशेष राज्य के दर्जे की मांग
दूसरा कारण बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग है। नीतीश कुमार और उनकी पार्टी JDU लंबे समय से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर रही है। इस मांग को पुनर्जीवित करके JDU अपने आप को राज्य में प्रासंगिक बनाए रखना चाहती है। पार्टी की बैठकों में इस मुद्दे पर प्रस्ताव पारित किए गए हैं, और उनके नेता लगातार इसको लेकर बयानबाजी कर रहे हैं। विशेष राज्य का दर्जा देने के मामले में केंद्र सरकार की उदासीनता ने नीतीश कुमार की नाराजगी को और बढ़ा दिया है।
बागी सरयू राय और झारखंड की राजनीति
तीसरा कारण झारखंड की राजनीति में BJP के बागी नेता सरयू राय की भूमिका है। सरयू राय, जिन्होंने 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट कटने के बाद बागी होकर चुनाव लड़ा और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को हरा दिया था, अब झारखंड में JDU के झंडाबरदार बनने जा रहे हैं। इस मामले ने भी नीतीश कुमार और BJP के बीच तनाव को बढ़ा दिया है।
आरक्षण और जातीय सर्वेक्षण
चौथा कारण आरक्षण और जातीय सर्वेक्षण का मुद्दा है। पटना हाईकोर्ट द्वारा आरक्षण को रद्द किए जाने के बाद से ही नीतीश कुमार की सरकार ने इस मुद्दे को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की है। ऐसा होने पर यह आरक्षण न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हो जाएगा। तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने भी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पर इसी तरह का दबाव बनाया था।
राजनीतिक विश्लेषण
नीतीश कुमार की राजनीतिक रणनीति को समझने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह किसी भी सियासी तिकड़म के बिना पलटवार नहीं करते हैं। वह तब पाला बदलते हैं जब उन्हें विपक्ष में कुछ संभावनाएं नजर आती हैं। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले पाला बदलकर NDA का दामन थाम लिया था। फिलहाल, उनके नाराज होने की चर्चा पटना से लेकर दिल्ली तक हो रही है।
संभावित परिणाम
इन सब कारणों के बीच, यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में बिहार और केंद्र की राजनीति में क्या बदलाव होते हैं। नीतीश कुमार की नाराजगी और उनके द्वारा लिए जा रहे फैसले भाजपा की परेशानी को और बढ़ा सकते हैं। आरजेडी प्रमुख लालू यादव और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी अगस्त में मोदी सरकार के गिरने की संभावना जताई है। ऐसे में, अगस्त महीने में बिहार और केंद्र की राजनीति में बड़े बदलाव की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।
नीतीश कुमार और BJP के बीच बढ़ती नाराजगी और उनके बीच की दरार ने बिहार की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी है। ईडी की छापेमारी, विशेष राज्य का दर्जा, सरयू राय का बागी रुख, और आरक्षण का मुद्दा इन सब कारणों ने नीतीश कुमार की नाराजगी को बढ़ा दिया है। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि नीतीश कुमार और उनकी पार्टी JDU क्या निर्णय लेती है और इसका बिहार और केंद्र की राजनीति पर क्या असर पड़ता है।