नितिन गडकरी जी के बयान से स्पष्ट होता है कि चुनावी बॉन्ड को लेकर उनका दृष्टिकोण किसी नाटक या पार्टी के हिस्से के रूप में नहीं है, बल्कि उन्हें यह मान्यता है कि राजनीतिक दलों को संसाधनों के बिना काम करना संभव नहीं है। राजनीतिक दलों को अपनी प्रचंड कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए धन की आवश्यकता होती है, और इसलिए चुनावी बॉन्ड की योजना को शुरू किया गया था। यह योजना भारतीय राजनीति में पारदर्शिता और विश्वास को बढ़ाने के लिए लायी गई थी।
चुनावी बॉन्ड के माध्यम से, राजनीतिक दलों को सीधे चंदा मिलता था और यह भी बिना किसी दानदाता के नाम का खुलासा किए। गडकरी जी ने सही कहा कि अगर सत्ताधारी दल बदल जाता है तो समस्याएं पैदा हो सकती हैं। यह चुनावी बॉन्ड की योजना भारतीय राजनीति में निर्दलीयता और त्रांसपेरेंसी को बढ़ाने का प्रयास था।
हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने इस योजना को असंवैधानिक ठहराकर रद्द कर दिया है। न्यायालय का तर्क था कि चुनावी बॉन्ड योजना भारतीय संविधान के अधिकारों के खिलाफ है, जो भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संरक्षित करता है। इस फैसले के बाद, राजनीतिक दलों को अब फिर से संसाधनों की तलाश में निकलना पड़ेगा।
नितिन गडकरी जी ने सही कहा है कि राजनीतिक दलों को संसाधनों के बगैर काम करना संभव नहीं है। धन के बिना, कोई भी पार्टी अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर सकती। राजनीतिक दलों के संसाधनों की आवश्यकता है ताकि वे अपनी राजनीतिक गतिविधियों को चला सकें और लोगों को अपने उद्देश्यों के लिए प्रेरित कर सकें।
अब, जैसा कि गडकरी जी ने कहा है, अगर उच्चतम न्यायालय को चुनावी बॉन्ड के मामले में कोई और निर्देश देता है, तो सभी राजनीतिक दलों को मिलकर इस पर विचार-विमर्श करना चाहिए। इससे संवैधानिक प्रक्रिया में सुधार हो सकता है और राजनीतिक दलों को एक नई दिशा मिल सकती है।