वाघ बकरी चाय के मालिक, पराग देसाई, की कहानी है। इनका यात्रा चाय की दुकान से लेकर 2000 करोड़ रुपये की कंपनी बनाने तक का है।दुकान की शुरुआत उन्होंने गुजरात चाय डिपो के नाम से की और चाय के नाम को फाइल करने में कुछ साल लगे। 1980 में उन्होंने खुली चाय की बिक्री की और इसके बाद कंपनी का कारोबार बढ़ता गया।

पराग देसाई का परिवार चाय के व्यापार से जुड़ा हुआ था और उनके परदादा नारणदास देसाई के साउथ अफ्रीका में चाय के बागान थे। उन्हें महात्मा गांधी के संपर्क में आने का अवसर मिला, लेकिन नस्लीय भेदभाव के कारण वे दक्षिण अफ्रीका छोड़कर भारत आना पड़ा । वाघ बकरी कंपनी का उत्थान धीरे-धीरे हुआ, और 1980 में उन्होंने देश में पहली बार पैक्ड टी का कारोबार शुरू किया।

इस नए कदम में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी मेहनत और संघर्ष ने उन्हें सफलता दिलाई। पैक्ड टी की शुरुआत के बाद, कंपनी ने अपने ब्रांड पर विश्वास बढ़ाना शुरू किया और धीरे-धीरे ग्राहकों में जागरूकता बढ़ाई। वह सबसे पहले टी-बैग की शुरुआत भी की और उनकी कड़ी मेहनत ने कंपनी को नए मुकाम तक पहुंचाया। देवाई वाघ बकरी चाय से 1995 में जुड़ने के समय कंपनी का कारोबार 100 करोड़ रुपये था, और आज वाघ बकरी का सालाना टर्नओवर 2000 करोड़ रुपये के पार हो गया है। वाघ बकरी चाय अब दुनियाभर के 60 देशों में एक्सपोर्ट हो रही है और देशभर में उनके टी लॉउंज और कैफे भी हैं।

इस कहानी से हमें मिलता है कि संघर्ष, मेहनत, और नए कदमों की ओर बढ़ने का साहस हमेशा सफलता की राह में मदद कर सकता है। वाघ बकरी चाय के मालिक पराग देसाई की इस उत्कृष्ट कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि किसी भी क्षेत्र में अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हमें प्रतिबद्ध रहना चाहिए।