मणिपुर, एक बार फिर से हिंसा की आग में जल उठा है। यह उत्तर-पूर्वी राज्य पहले भी विभिन्न जातीय और सामुदायिक संघर्षों का सामना कर चुका है, लेकिन हाल ही में हुई घटनाओं ने राज्य को फिर से अस्थिरता की चपेट में ला दिया है। जिरीबाम जिले में शुरू हुई यह हिंसा, जहां उग्रवादियों ने पुलिस चौकियों और घरों पर हमला किया, राज्य में सुरक्षा की स्थिति को और गंभीर बना दिया है।
हिंसा की शुरुआत
हिंसा की शुरुआत एक 59 वर्षीय व्यक्ति की हत्या से हुई थी। यह घटना गुरुवार शाम को हुई जब पीड़ित व्यक्ति अपने खेत पर गया था और वहीं से लापता हो गया। बाद में उसका शव बरामद हुआ, जिससे पूरे इलाके में तनाव फैल गया। इस हत्या ने जिरीबाम जिले में तनाव का माहौल बना दिया और हिंसा भड़क उठी।
उग्रवादियों का हमला

शुक्रवार और शनिवार की दरमियानी रात को कुछ उग्रवादियों ने जिरीबाम जिले में पुलिस चौकियों और घरों पर हमला किया। बताया जा रहा है कि ये उग्रवादी 3-4 बोट में आए थे और उन्होंने रात 12:30 बजे के करीब चोतोबेकरा पोस्ट पर हमला किया। इसके बाद लमतई खुनोऊ और मोधूपुर पोस्ट पर भी हमला हुआ। इन घटनाओं में कई घरों को आग के हवाले कर दिया गया।
राहत शिविर और बेघर लोग

उग्रवादियों के हमलों के बाद, मेइती समुदाय के 200 से अधिक लोगों को राहत शिविरों में भेजा गया है। इन लोगों को जिरी खेल परिसर में बनाए गए राहत शिविर में रखा गया है। पुलिस ने बताया कि संदिग्ध उग्रवादियों ने जिरीबाम जिले के बाहरी गांवों लामताई खुनौ, दिबोंग खुनौ, नूनखाल और बेगरा में कई घरों को जला दिया। इस कारण से इन गांवों के लोग अब राहत शिविरों में रह रहे हैं।
सुरक्षाबल और प्रशासनिक कार्रवाई
हिंसा के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए मणिपुर पुलिस ने राज्य पुलिस कमांडो को तत्काल जिरीबाम जाने का आदेश दिया है। पुलिस ने बताया कि क्षेत्र में और अधिक सुरक्षाकर्मियों को भेजा गया है ताकि वहां शांति व्यवस्था बनाई जा सके। स्थानीय लोगों ने जिरीबाम थाने के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और मांग की कि चुनाव के मद्देनजर उनसे लिए गए लाइसेंसी हथियार अब उन्हें लौटा दिए जाएं।
जातीय संघर्ष और मणिपुर की स्थिति

मणिपुर में पिछले साल से मई से जारी जातीय हिंसा ने राज्य को गहरे संकट में डाल दिया है। इस हिंसा में अब तक 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग बेघर हो गए हैं। जिरीबाम, जो पहले इस हिंसा से अप्रभावित था, अब इस आग में झुलस रहा है। राज्य में मेइती, मुस्लिम, नागा, कुकी और गैर-मणिपुरी लोग रहते हैं और ये सभी समुदाय इस हिंसा से प्रभावित हुए हैं।
प्रशासन और सुरक्षा की चुनौतियाँ
मणिपुर में बढ़ती हिंसा ने प्रशासन और सुरक्षा बलों के सामने गंभीर चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। सुरक्षाबलों को न केवल हिंसा पर काबू पाना है, बल्कि राहत शिविरों में रह रहे लोगों की सुरक्षा और आवश्यकताओं का भी ध्यान रखना है। इस स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए राज्य और केंद्र सरकार को मिलकर काम करना होगा और उग्रवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी होगी।
मणिपुर में बढ़ती हिंसा और उग्रवाद ने राज्य को एक बार फिर से अस्थिरता के दौर में ला दिया है। जातीय और सामुदायिक संघर्षों ने राज्य की शांति और सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है। इस स्थिति से निपटने के लिए प्रशासन, सुरक्षा बलों और स्थानीय समुदायों को मिलकर प्रयास करने होंगे। लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और राज्य में शांति बहाल करने के लिए ठोस और निर्णायक कदम उठाने की आवश्यकता है। केवल तभी मणिपुर एक बार फिर से शांति और स्थिरता की राह पर लौट सकेगा।