नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू, दोनों ही नेता वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को सत्ता में बने रहने के लिए इन दोनों नेताओं का समर्थन आवश्यक है। नरेंद्र मोदी की नई सरकार के गठन के समय ये दोनों नेता ‘किंगमेकर’ की भूमिका में नजर आ रहे हैं।
नीतीश कुमार, जो वर्तमान में बिहार के मुख्यमंत्री हैं, ने घोषणा की है कि वह प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण तक दिल्ली में ही रहेंगे। यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) [JDU] के समर्थन के बिना NDA के लिए पूर्ण बहुमत प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है। JDU की 12 लोकसभा सीटें NDA को आवश्यक समर्थन प्रदान करती हैं। नीतीश कुमार ने तीन केंद्रीय मंत्री पदों की मांग की है, जो उनकी पार्टी की शक्ति और समर्थन को दर्शाता है। उन्होंने यह मांग की है कि हर चार सांसदों पर एक मंत्री पद का फॉर्मूला अपनाया जाए। यह उनकी रणनीति का हिस्सा है जिससे वह अपने दल की भूमिका को और मजबूत बना सकें।

चंद्रबाबू नायडू, जो आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं, उनकी तेलुगू देशम पार्टी (TDP) ने आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुमत प्राप्त किया है। उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण को नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण के कारण 12 जून तक टाल दिया है। TDP की 16 लोकसभा सीटें NDA के लिए महत्वपूर्ण हैं। नायडू ने अपनी पार्टी के लिए लोकसभा स्पीकर पद की मांग की है, जो उनकी महत्वाकांक्षाओं और उनकी पार्टी की भूमिका को दर्शाता है। अगर TDP NDA से अलग होती है, तो NDA बहुमत खो सकती है, जो वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को और जटिल बना सकती है।
इन दोनों नेताओं की भूमिका को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि वे अपनी शर्तों और समर्थन के लिए एक मजबूत स्थिति में हैं। नरेंद्र मोदी की नई सरकार को इन दोनों नेताओं के समर्थन की आवश्यकता है, और वे इस स्थिति का उपयोग अपने दलों के लाभ के लिए कर रहे हैं।

नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की राजनीतिक चालें और मांगें यह दर्शाती हैं कि वे अपनी पार्टियों के लिए अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए तैयार हैं। नीतीश कुमार की दिल्ली में उपस्थिति और उनकी तीन केंद्रीय मंत्री पदों की मांग उनकी रणनीतिक सोच को दर्शाती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि उन्हें भाजपा के पास लोकसभा स्पीकर पद होने से कोई ऐतराज नहीं है, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे केंद्र सरकार के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हैं।

चंद्रबाबू नायडू की स्थिति भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। उन्होंने नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण के कारण अपने शपथ ग्रहण को टाल दिया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे केंद्र सरकार के गठन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। उन्होंने अपनी पार्टी के लिए लोकसभा स्पीकर पद की मांग की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे अपनी पार्टी की भूमिका को और मजबूत करने के लिए तैयार हैं।

देशभर की 543 लोकसभा सीटों में NDA गठबंधन को 293 सीटों पर जीत मिली है। इसमें नीतीश कुमार के JDU की 12 सीटें और चंद्रबाबू नायडू के TDP की 16 सीटें भी शामिल हैं। अगर ये दोनों नेता NDA से अलग होते हैं, तो NDA बहुमत से दूर हो जाएगी। वहीं, आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव में TDP को 135 सीटों पर जीत मिली है। राज्य में विधानसभा की कुल 175 सीटें हैं, और बहुमत के लिए 88 सीटों की जरूरत होती है।
इन दोनों नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि वे अपनी पार्टियों और अपने व्यक्तिगत राजनीतिक करियर के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उनकी रणनीतिक चालें और मांगें यह दर्शाती हैं कि वे अपने दलों के लिए अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए तैयार हैं, और उनकी भूमिका नरेंद्र मोदी की नई सरकार के गठन में महत्वपूर्ण होगी।
इस प्रकार, नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की राजनीतिक स्थिति और उनकी मांगें आने वाले समय में भारतीय राजनीति के परिदृश्य को प्रभावित कर सकती हैं। उनकी रणनीतियां और निर्णय इस बात को स्पष्ट करते हैं कि वे भारतीय राजनीति के महत्वपूर्ण किंगमेकर की भूमिका निभा रहे हैं।