ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) को लेकर देश की राजनीति में विवाद और घमासान कोई नई बात नहीं है। हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर बयान देते हुए ईवीएम को “ब्लैक बॉक्स” करार दिया और उसकी पारदर्शिता पर सवाल उठाए। इसके बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने राहुल गांधी और महाविकास आघाड़ी पर जोरदार पलटवार किया।
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का बयान

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विपक्ष पर तीखा हमला करते हुए कहा कि अगर विपक्ष को ईवीएम पर इतनी ही आपत्ति है, तो उन सभी सीटों से इस्तीफा देकर दोबारा चुनाव लड़ें जहां से वे जीते हैं। शिंदे ने कहा कि महाविकास आघाड़ी के लोग जहां से जीतते हैं, वहां ईवीएम सही है और जहां हारते हैं, वहां ईवीएम खराब हो जाती है। यह दोहरा मापदंड नहीं चल सकता। शिंदे ने राहुल गांधी पर भी निशाना साधा और कहा कि राहुल गांधी दो जगह से जीते हैं, क्या वहां भी ईवीएम खराब है? अगर उन्हें लगता है कि ईवीएम खराब है तो वे इस्तीफा दें और फिर से चुनाव लड़ें।
राहुल गांधी का बयान

राहुल गांधी ने ईवीएम पर सवाल उठाते हुए कहा था कि ईवीएम एक “ब्लैक बॉक्स” है और इसकी पारदर्शिता पर गंभीर चिंताएँ हैं। उन्होंने कहा कि जब संस्थाओं में जवाबदेही की कमी होती है, तो लोकतंत्र एक दिखावा बन जाता है और धोखाधड़ी की संभावना बढ़ जाती है। राहुल गांधी ने यह बयान एलन मस्क के ट्वीट के संदर्भ में दिया था, जिसमें मस्क ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को खत्म करने की बात कही थी। मस्क ने कहा था कि इन मशीनों को हैक किए जाने का जोखिम, चाहे वह इंसानों द्वारा हो या एआई द्वारा, हमेशा बना रहता है।
ईवीएम विवाद का इतिहास

ईवीएम का उपयोग भारतीय चुनावों में 1990 के दशक से हो रहा है और समय-समय पर इस पर सवाल उठते रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने-अपने अनुसार इस पर आरोप लगाए हैं, खासकर तब जब वे चुनाव हार जाते हैं। ईवीएम की पारदर्शिता और सुरक्षा पर सवाल उठाए गए हैं, हालांकि निर्वाचन आयोग और विशेषज्ञों ने इसे कई बार सही ठहराया है।
राजनीतिक पार्टियों का दृष्टिकोण
राजनीतिक पार्टियों का ईवीएम पर अलग-अलग दृष्टिकोण है। बीजेपी और उसके सहयोगी दल इसे सही मानते हैं और कहते हैं कि ईवीएम पूरी तरह सुरक्षित और पारदर्शी है। वहीं, विपक्षी दल, खासकर जब वे चुनाव हार जाते हैं, तो ईवीएम पर सवाल उठाते हैं। इस बार भी यही देखने को मिला है।
चुनाव आयोग का रुख

भारतीय निर्वाचन आयोग ने कई बार स्पष्ट किया है कि ईवीएम पूरी तरह सुरक्षित हैं और उन्हें हैक करना संभव नहीं है। आयोग ने यह भी कहा है कि ईवीएम को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। चुनाव आयोग ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि ईवीएम की जांच और सत्यापन के लिए हर संभव कदम उठाए गए हैं।
ईवीएम विवाद भारतीय राजनीति में एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। जब तक राजनीतिक दल अपनी हार को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते और चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर विश्वास नहीं करते, तब तक यह विवाद बना रहेगा। राहुल गांधी और एकनाथ शिंदे के बीच की ताजा बयानबाजी ने इस मुद्दे को और अधिक गरमा दिया है। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में इस विवाद का क्या नतीजा निकलता है और क्या कोई समाधान निकल पाता है जिससे सभी राजनीतिक दल संतुष्ट हो सकें।
इस प्रकार, यह आवश्यक है कि राजनीतिक दल ईवीएम पर अपनी स्थिति स्पष्ट करें और यदि उन्हें इस पर विश्वास नहीं है, तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी का तरीका भी बदलें। विपक्ष को चाहिए कि वह ईवीएम पर सवाल उठाने के बजाय चुनावी सुधारों पर ध्यान केंद्रित करे और सरकार और निर्वाचन आयोग के साथ मिलकर काम करे ताकि चुनावी प्रक्रिया और अधिक पारदर्शी और विश्वसनीय बन सके।