बिहार में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक द्वारा स्कूल के समय में किए गए बदलाव को लेकर एक नई विवाद खड़ा हो गया है। गर्मी को देखते हुए स्कूल का समय सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक कर दिया गया है। इस निर्णय के बाद शिक्षकों और विभिन्न नेताओं द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है।
शिक्षकों का कहना है कि यह समय उनके लिए अनुकूल नहीं है। इसके चलते पांच एमएलसी ने शिक्षा मंत्री से सरकारी स्कूल के समय में बदलाव की मांग करते हुए पत्र लिखा था। उन्होंने सुझाव दिया था कि स्कूल का समय सुबह 6:30 से 11:30 बजे तक किया जाए ताकि शिक्षकों को आने में परेशानी न हो। लेकिन शिक्षा विभाग ने इसके जवाब में स्पष्ट कर दिया है कि स्कूल में शिक्षकों को प्रतिदिन 7.5 घंटे रहना आवश्यक है, जैसा कि निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत निर्धारित किया गया है।
शिक्षा विभाग के पोस्ट में लिखा गया, “निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत प्रतिदिन शिक्षकों के लिए कार्य अवधि 7.5 घंटे। (इसमें पठन-पाठन की तैयारी की अवधि निहित हैं)।” इस पोस्ट से स्पष्ट है कि केके पाठक अपने निर्णय पर अडिग हैं और समय सारिणी में कोई बदलाव नहीं करेंगे।
केके पाठक के इस निर्णय के बाद शिक्षकों और कई नेताओं में असंतोष बढ़ गया है। सरकार के सहयोगी दल के नेताओं ने भी इस समय सारिणी को गलत मानते हुए केके पाठक को बीमार तक कह दिया है। विपक्ष भी इस निर्णय के खिलाफ बोल रहा है।
शिक्षकों का कहना है कि सुबह 6 बजे स्कूल पहुंचना उनके लिए मुश्किल होता है, विशेषकर उन शिक्षकों के लिए जो दूर-दराज के इलाकों से आते हैं। इसके अलावा, बच्चों के लिए भी सुबह-सुबह स्कूल जाना मुश्किल होता है। इस नई समय सारिणी से बच्चों की सेहत पर भी असर पड़ सकता है।
केके पाठक ने हालांकि इस विवाद के बावजूद अपने निर्णय पर कायम रहने का संकेत दिया है। उनका मानना है कि गर्मी को देखते हुए सुबह का समय सबसे उपयुक्त है ताकि बच्चे दोपहर की भीषण गर्मी से बच सकें। उनका यह भी कहना है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षकों की कार्य अवधि 7.5 घंटे निर्धारित है और इसे बदला नहीं जा सकता।
इस निर्णय के विरोध में शिक्षकों के साथ-साथ कुछ अभिभावक भी हैं। उनका कहना है कि यह समय सारिणी बच्चों के लिए भी असुविधाजनक है। बच्चों को इतनी जल्दी उठना और स्कूल जाना कठिन होता है। इसके अलावा, कुछ ग्रामीण इलाकों में बस सेवा भी इतनी जल्दी उपलब्ध नहीं होती, जिससे बच्चों और शिक्षकों दोनों को परेशानी होती है।
केके पाठक का यह निर्णय बिहार के सरकारी स्कूलों के लिए एक बड़ा बदलाव है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस विवाद को कैसे सुलझाती है। क्या केके पाठक अपने निर्णय पर कायम रहेंगे या फिर शिक्षकों और नेताओं के विरोध को देखते हुए समय सारिणी में कोई बदलाव करेंगे?
सरकार के सहयोगी दलों और विपक्षी नेताओं के इस मुद्दे पर बयानबाजी से स्पष्ट है कि यह विवाद अभी थमने वाला नहीं है। शिक्षक संगठन भी इस मामले में अपने विचार स्पष्ट करने और अपने हक की मांग को लेकर आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं।
शिक्षा विभाग के इस निर्णय के बाद अब सबकी नजरें इस पर हैं कि सरकार और शिक्षा विभाग इस मुद्दे पर आगे क्या कदम उठाएंगे। शिक्षकों और उनके समर्थक नेताओं की प्रतिक्रिया का भी इंतजार है। इस बीच, बच्चों और अभिभावकों की चिंता को भी ध्यान में रखना आवश्यक है ताकि उनका शैक्षणिक जीवन प्रभावित न हो।
यह मुद्दा सिर्फ समय सारिणी का नहीं, बल्कि शिक्षकों और बच्चों की सुविधा और उनकी सुरक्षा का भी है। इसलिए सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए और सभी संबंधित पक्षों की बात सुनकर ही कोई अंतिम निर्णय लेना चाहिए।