पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने जेल में रहते हुए अपने सुर बदल लिए हैं। हाल ही में दिए गए एक बयान में उन्होंने कहा कि सेना के साथ अच्छे संबंध न रखना ‘मूर्खता’ होगी और अमेरिका के प्रति भी उनका कोई दुर्भाव नहीं है। यह बयान खासा चौंकाने वाला है, क्योंकि पहले इमरान खान ने सेना और अमेरिका दोनों को ही अपनी सत्ता से हटाए जाने के लिए जिम्मेदार ठहराया था।
सेना और अमेरिका के साथ संबंध
इमरान खान ने कहा कि पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति और सेना की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए सेना के साथ अच्छे संबंध रखना जरूरी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी आलोचना व्यक्तियों पर केंद्रित थी, न कि सेना पर एक संस्था के रूप में। उन्होंने कहा, “हमें अपने सैनिकों और सशस्त्र बलों पर गर्व है।” इमरान खान का यह बयान उनके पिछले बयानों से पूरी तरह विपरीत है, जहां उन्होंने सेना को ही अपने पतन के लिए जिम्मेदार ठहराया था।
सत्ता से हटाए जाने के बाद की सफाई
इमरान खान ने सत्ता से हटाए जाने के बाद से अपनी आलोचना का बचाव किया। उन्होंने कहा कि सैन्य नेतृत्व के गलत आकलन को पूरी संस्था के खिलाफ नहीं माना जाना चाहिए। यह साफ करता है कि इमरान खान अब अपनी रणनीति में बदलाव कर रहे हैं और सेना के साथ संबंध सुधारने की कोशिश कर रहे हैं।
सेना के साथ वार्ता का प्रस्ताव
इमरान खान ने सेना के साथ ‘सशर्त वार्ता’ करने की पेशकश की है। उन्होंने कहा कि यह वार्ता तभी संभव होगी जब ‘स्वच्छ और पारदर्शी’ चुनाव कराए जाएं और उनके समर्थकों के खिलाफ ‘फर्जी’ मामले वापस लिए जाएं। हालांकि, पाकिस्तानी सेना और सरकार ने खान के बयान पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
अमेरिका के प्रति रवैया
अमेरिका के प्रति भी इमरान खान ने अपना रुख नरम किया है। उन्होंने कहा कि उनके मन में अमेरिका के खिलाफ कोई दुर्भावना नहीं है। पहले इमरान खान ने अमेरिका को ही अपनी सत्ता से हटाए जाने का प्रमुख कारण बताया था।
पाकिस्तानी राजनीति में सेना की भूमिका
पाकिस्तान की राजनीति में सेना का हमेशा से ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। देश के 76 साल के स्वतंत्र इतिहास में सेना ने आधे से अधिक समय तक शासन किया है और राजनीतिक प्रक्रियाओं में बड़ी भूमिका निभाई है। किसी भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकाल के पांच साल पूरे नहीं किए हैं और अधिकांश ने सेना के साथ समझौते करके अपनी रिहाई हासिल की है।
इमरान खान और सेना के बीच संबंध
2022 में इमरान खान ने जनरलों के साथ मतभेद के बाद अविश्वास प्रस्ताव पर संसदीय वोट में सत्ता खो दी थी। उन्होंने आरोप लगाया कि सेना उनके खिलाफ राजनीतिक रूप से प्रेरित मामलों का समर्थन कर रही है, जिसका सेना ने खंडन किया। इमरान खान का कहना है कि सरकार को जनता का समर्थन नहीं है, क्योंकि फरवरी में हुए चुनाव में उनकी पार्टी समर्थित उम्मीदवारों ने संसद में सबसे अधिक सीटें जीती थीं।
शहबाज शरीफ की सरकार के साथ वार्ता
इमरान खान ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की गठबंधन सरकार के साथ किसी भी तरह की बातचीत को बेकार बताया है। उन्होंने कहा कि सरकार को जनता का समर्थन नहीं है और इसलिए ‘वास्तव में सत्ता का इस्तेमाल करने वालों के साथ जुड़ना अधिक फायदेमंद होगा।’
इमरान खान के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि वे अब अपनी रणनीति में बदलाव कर रहे हैं। उन्होंने सेना और अमेरिका के प्रति अपने सुर बदल लिए हैं और अब उनकी प्राथमिकता सेना के साथ अच्छे संबंध बनाना है।
पाकिस्तानी राजनीति में सेना की भूमिका को देखते हुए, इमरान खान का यह कदम उनके राजनीतिक भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। सेना के साथ संबंध सुधारने से उन्हें भविष्य में फिर से सत्ता में आने का मौका मिल सकता है। हालांकि, यह देखना बाकी है कि सेना और सरकार इमरान खान के इस प्रस्ताव को कैसे लेते हैं और क्या वे उनके साथ किसी तरह की वार्ता के लिए तैयार होते हैं।