भारतीय विधि आयोग ने हाल ही में समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड – UCC) के मुद्दे पर जनमत और प्रस्तावों का आमंत्रण किया है। UCC भारत में एक विवादास्पद और राजनीतिक विषय रहा है। पहले विधि आयोग का दृष्टिकोण था कि UCC आवश्यक नहीं है लेकिन आज की बढ़ती आधुनिक युग में, परम्परागत सामाजिक प्रणाली से ऊपर उठकर नए मांग उभर कर आये हैं जैसी की अंतर जातीय विवाह, अंतर धार्मिक विवाह और इनकी अंदर की जटिलता पे एक समरसता निकलने पे हो रहा है । UCC एक प्रस्ताव है जो विभिन्न धार्मिक समुदायों के व्यक्तिगत कानूनों को सभी नागरिकों के लिए एक सामान्य कानूनी सेट से बदलने का उद्देश्य रखता है।
समान नागरिक संहिता क्या है?
समान नागरिक संहिता के उल्लेख को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में किया गया है, जो राज्य की नीति के निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy – DPSP) का अंग है।अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि ‘राज्य, भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।’ये निदेशक तत्व कानूनी रूप से प्रवर्तनीय नहीं होते हैं, लेकिन नीति निर्माण में राज्य का मार्गदर्शन करते हैं। यूनिफाइड कोड को कुछ लोग राष्ट्रीय एकता और लैंगिक न्याय को बढ़ावा देने का एक तरीका मानते हैं जबकि कुछ लोग इसे धार्मिक स्वतंत्रता और विविधता के लिए खतरा मानकर इसका विरोध करते हैं।
भारत में गोवा ही एकमात्र राज्य है जहां समान नागरिक संहिता लागू है। वर्ष 1961 में पुर्तगाली शासन से स्वतंत्रता के बाद गोवा ने अपने सामान्य पारिवारिक कानून को बनाए रखा, जिसे गोवा सिविल कोड (Goa Civil Code) के रूप में जाना जाता है।
UCC के लाभ
- समान नागरिक संहिता राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता को प्रोत्साहित करती है और सामाजिक समरसता को बढ़ाती है।
- इससे संपर्क, समझदारी और सद्भाव की भावना विकसित होती है, जिससे विभिन्न सांप्रदायिक विवादों की संख्या कम होती है।
- समान नागरिक संहिता महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करती है और उन्हें समानता, स्वतंत्रता और सम्मान का अधिकार प्रदान करती है।
- यह कानूनी प्रणाली को सरल बनाने के साथ-साथ न्यायप्रणाली में सुधार करके न्याय सुनिश्चित करती है।
- समान नागरिक संहिता समाज को समग्र रूप से विकसित करती है और सभी नागरिकों को उनके अधिकारों का उपयोग करने की संवेदनशीलता प्रदान करती है।
UCC से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण प्रकरण
यहां यूसीसी से संबंधित चुनिंदा महत्त्वपूर्ण प्रकरणों की कुछ उदाहरण हैं, जिनमें इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रकट होती है
त्रिपुरा दार्जी केस:
त्रिपुरा दार्जी केस एक मामला था जिसमें एक हिन्दू पुरुष ने इस्लाम धर्म को अपनाने के बाद अपनी पत्नी को ले जाने के लिए एक मामले में यूसीसी का दावा किया था। यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता और स्वतंत्र इच्छाशक्ति के मुद्दों को उजागर करता है।
तीन तलाक मुद्दा:
तीन तलाक मुद्दा यूसीसी का एक विवादास्पद मामला रहा है। यह मुद्दा तलाक के प्रक्रिया और तलाक के प्रभाव को बयान करता है. पूर्व में, मुस्लिम पुरुषों को इस्लामी निकाह के तहत तीन तलाक देने की अधिकार होती थी, जिससे तलाक दिए गए तत्वाधान के कारण बहुविवाह और सामाजिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता था। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय लिया है और 2019 में तीन तलाक को अवैध घोषित किया है। यह निर्णय यूसीसी के उदाहरण के रूप में उठाया जाता है, जो विवाह और तलाक के मामलों में सामान्यता और समानता का प्रश्न उठाता है।
धार्मिक संगठनों के आपत्तिजनक विरोध:
यूसीसी को लेकर कुछ धार्मिक संगठन और आंदोलन सक्रिय रहे हैं और इसे अपनी धार्मिक आधार पर आपत्तिजनक मानते हैं। ये संगठन उन प्रथाओं की संरक्षा करने की मांग करते हैं जो उनकी संप्रदायिक और धार्मिक पहचान के तहत अपनाई जाती हैं।
यहां कुछ महत्त्वपूर्ण प्रकरण हैं जो संयुक्त सिविल कोड से संबंधित हैं:
विवाह:
संयुक्त सिविल कोड के तहत, विवाह और उससे जुड़े सभी मामलों में समान अधिकार और कर्तव्य के सिद्धांतों को स्थापित किया जाता है। यह विवाहिता के अधिकारों, तलाक के नियमों, विवाह बनाने और विच्छेद करने की प्रक्रिया के लिए एक सामान्य आधार स्थापित करता है।
तलाक:
संयुक्त सिविल कोड तलाक के मामलों को भी संघटित करता है। यह तलाक की प्रक्रिया, तलाक के प्रकार, पत्नी के अधिकार और तलाक के परिणामों को संघटित करता है। इससे सामान्य और न्यायपूर्ण मान्यता को सुनिश्चित किया जाता है और महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा की जाती है।
संपत्ति:
संयुक्त सिविल कोड विभिन्न पर्सनल लॉज के अंतर्गत संपत्ति के वितरण को संघटित करता है। यह संपत्ति के अंदरूनी वितरण, संपत्ति के उत्पन्न होने पर अधिकार, दायित्व और वारिसों के बीच सामान्यता को सुनिश्चित करता है।
संवैधानिक परिप्रेक्ष्य:
भारतीय संविधान सांस्कृतिक स्वायत्तता के अधिकार की पुष्टि करता है और सांस्कृतिक समायोजन का लक्ष्य रखता है। अनुच्छेद 29(1) सभी नागरिकों की विशिष्ट संस्कृति का संरक्षण करता है। मुसलमानों को यह विचार करने की ज़रूरत है कि बहुविवाह और मनमाने ढंग से एकतरफा तलाक जैसी प्रथाएँ उनके सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप हैं या नहीं। हमारा ध्यान एक ऐसी न्यायसंगत संहिता प्राप्त करने पर होना चाहिये जो समानता और न्याय को बढ़ावा दे।