अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने हाल ही में भारत और फ्रांस पर अपनी भड़ास निकाली है, आर्मीनिया को हथियार सप्लाई करने का आरोप लगाते हुए। इससे उत्पन्न हुए विवाद के पीछे की कहानी में, यह साफ है कि भारत की सरकार एक तरफ दोस्ताना रिश्तों को बनाए रखना चाहती है, लेकिन दूसरी तरफ राष्ट्रों के बीच चल रहे विवादों में नहीं फंसना चाहती है।

अजरबैजान और आर्मीनिया दोनों ही देश 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद बने हैं और दोनों देशों के बीच विवाद 1980 के दशक से ही शुरू हो गया था। दोनों देशों के बीच विवाद का केंद्र नागोर्नो-काराबाख इलाके है, जिसमें अजरबैजान और आर्मीनिया दोनों कब्जे में हैं।
आर्मीनिया ने हाल ही में भारत से MArG 155 स्व-चालित हॉवित्जर हथियारों की डील की है। आर्मीनिया के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि उनके देश की जरूरतों के आधार पर भारत एक विश्वसनीय हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है और इससे आर्मीनिया को विशेष लाभ हुआ है। इस डील के परिणामस्वरूप, भारत आर्मीनिया को सैन्य उपकरणों की एक नई खेप की आपूर्ति करने का विचार कर रहा है।

अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने भारत और फ्रांस पर निशाना साधते हुए यह कहा कि आर्मीनिया को हथियार सप्लाई करने वाले देश आग में घी डाल रहे हैं। उनका मानना है कि इन हथियारों की मदद से आर्मीनिया काराबाख क्षेत्र को वापस ले सकता है और इससे एक नया युद्ध शुरू हो सकता है। यह विवाद नागोर्नो-काराबाख इलाके के कब्जे पर है, जो अजरबैजान के कब्जे में है। इसके बीच विवाद की चरम सीमा को लेकर आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच घटित हो रहे हैं।
भारत ने हमेशा दोस्ताना रिश्तों को बनाए रखने का प्रयास किया है, और यह विवादों में पक्षपात नहीं करना चाहता है। भारत की राजनीतिक दृष्टि से इसे अपने सुरक्षा और सामरिक मुद्दों के लिए विशेष ध्यान देना होगा, ताकि यह आपूर्तिकर्ता देशों के बीच उन्हें अपनी हथियारों की डीलों में फंसने से बचा सके।