उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और समाजवादी पार्टी की विधायक पल्लवी पटेल की मुलाकात ने बड़े सियासी हलचलें पैदा की हैं। इस मुलाकात के पीछे छिपे सियासी मायने और इसके प्रभावों को समझने के लिए हमें तीन प्रमुख पहलुओं पर ध्यान देना होगा: अनुप्रिया पटेल, अखिलेश यादव और केशव प्रसाद मौर्या।
अनुप्रिया पटेल और पल्लवी पटेल का सियासी प्रभाव

अनुप्रिया पटेल और पल्लवी पटेल दोनों बहनें हैं और अपना दल (कमेरावादी) पार्टी से जुड़ी हैं। अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री हैं, जबकि पल्लवी पटेल समाजवादी पार्टी की विधायक हैं। इन दोनों के बीच सियासी महत्वाकांक्षाओं के कारण कुछ मतभेद हैं। अनुप्रिया पटेल ने लोकसभा चुनाव के बाद ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधा था। इसके अलावा नेमप्लेट विवाद के बाद भी अनुप्रिया ने योगी सरकार को खुली चुनौती दी थी।
पल्लवी पटेल से योगी आदित्यनाथ की मुलाकात ने इस पारिवारिक और राजनीतिक विभाजन को और गहरा कर दिया है। यह मुलाकात अनुप्रिया पटेल के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि मुख्यमंत्री उनके विरोधियों के साथ भी संपर्क में हैं और उनके प्रभाव को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। इस प्रकार, यह मुलाकात अनुप्रिया पटेल को चिढ़ाने और उनके राजनीतिक महत्व को चुनौती देने के उद्देश्य से भी देखी जा सकती है।
अखिलेश यादव और फूलपुर का चुनाव

अखिलेश यादव, जो समाजवादी पार्टी के प्रमुख हैं, ने भी इस मुलाकात को बड़ी ध्यान से देखा है। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के कैबिनेट बैठकों से दूर रहने और सार्वजनिक रूप से योगी आदित्यनाथ की आलोचना करने के बाद अखिलेश यादव ने मौर्या को अपने पक्ष में करने की कोशिश की। उन्होंने मौर्या को “मानसून ऑफर” दिया, जिससे सियासी गलियारों में हलचल मच गई।
फूलपुर का विधानसभा चुनाव आने वाला है, जो अखिलेश यादव के लिए एक महत्वपूर्ण मौका हो सकता है। लेकिन योगी आदित्यनाथ की पल्लवी पटेल से मुलाकात ने सपा के लिए इस राह को मुश्किल बना दिया है। पल्लवी पटेल ने 2022 के विधानसभा चुनाव में सिराथु से केशव मौर्या को हराया था, और अब बीजेपी उनके साथ मिलकर फूलपुर की सीट पर पुनः कब्जा करने की योजना बना सकती है। इससे अखिलेश यादव की फूलपुर जीतने की संभावनाएं कम हो सकती हैं।
केशव प्रसाद मौर्या की स्थिति

केशव प्रसाद मौर्या, जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम हैं, ने भी हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आलोचना की है। उनका कैबिनेट बैठक में नहीं जाना और योगी सरकार के खिलाफ आरक्षण की जानकारी मांगना इस बात का संकेत है कि पार्टी के अंदर खींचतान चल रही है।
केशव मौर्या और योगी आदित्यनाथ के बीच मतभेदों का फायदा उठाने की कोशिश में, अखिलेश यादव ने मौर्या को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया। लेकिन योगी आदित्यनाथ की पल्लवी पटेल से मुलाकात ने इस प्रयास को ध्वस्त कर दिया है। यह मुलाकात मौर्या के लिए भी एक संदेश है कि योगी आदित्यनाथ अपने विरोधियों को कैसे शांत कर सकते हैं और अपने सियासी चालों से उन्हें कमजोर कर सकते हैं।
आगामी उपचुनाव और बीजेपी की रणनीति

उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। सपा के 6 विधायकों के इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल होने के बाद, यह उपचुनाव और भी महत्वपूर्ण हो गया है। इन चुनावों में बीजेपी की जीत की संभावनाएं बढ़ाने के लिए योगी आदित्यनाथ की पल्लवी पटेल से मुलाकात एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। फूलपुर की सीट से बीजेपी विधायक अब सांसद बन गए हैं, और बीजेपी पल्लवी पटेल की मदद से इस सीट को एक बार फिर से जीतने की योजना बना सकती है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पल्लवी पटेल से मुलाकात ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई सियासी चालों और रणनीतियों को जन्म दिया है। इस मुलाकात ने अनुप्रिया पटेल को चुनौती दी है, अखिलेश यादव के फूलपुर जीतने की संभावनाओं को कम किया है, और केशव प्रसाद मौर्या के खिलाफ एक मजबूत संदेश भेजा है। आगामी उपचुनावों में बीजेपी की संभावनाओं को मजबूत करने के लिए यह मुलाकात एक मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकती है।
योगी आदित्यनाथ ने अपने राजनीतिक विरोधियों को चारों खाने चित्त कर दिखाया है कि सियासत में चालों का महत्व कितना अधिक होता है। इस मुलाकात से यह भी स्पष्ट हो गया है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में आने वाले दिनों में और भी दिलचस्प मोड़ देखने को मिल सकते हैं।