पुणे पोर्श हादसे ने न केवल शहर को हिला दिया है, बल्कि यह भी सवाल उठाया है कि क्या नाबालिग आरोपी को उचित सजा मिलेगी और पीड़ितों को इंसाफ मिलेगा। इस हादसे में IT इंजीनियर मनीष और उनकी दोस्त अश्विनी कोस्टा की मौत हो गई थी। इस हादसे के बाद पुलिस ने नाबालिग आरोपी के खिलाफ धारा 304 (गैर-इरादतन हत्या) और धारा 185 (शराब पीकर गाड़ी चलाने) के तहत मामला दर्ज किया है। आइए जानते हैं इन धाराओं के तहत क्या सजा का प्रावधान है और इस केस की मौजूदा स्थिति क्या है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304 गैर-इरादतन हत्या के मामलों में लागू होती है। इस धारा के तहत आरोपी को थाने से जमानत नहीं मिल सकती। यदि अदालत में दोष सिद्ध हो जाता है तो आरोपी को अधिकतम 10 साल की जेल की सजा हो सकती है। इस धारा के तहत मामला तब दर्ज होता है जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, लेकिन हत्या का इरादा नहीं होता है।
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मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 185 के तहत नशे में ड्राइविंग करना अपराध माना गया है। इस धारा के तहत कानून का उल्लंघन करने वाले को 6 महीने की जेल हो सकती है और 2 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इस धारा का उद्देश्य सड़क दुर्घटनाओं को रोकना और सुरक्षित ड्राइविंग को सुनिश्चित करना है।
पहले नाबालिग आरोपी को निबंध लिखवाकर जमानत दे दी गई थी, लेकिन जब लोगों ने इस पर विरोध जताया तो जुवेनाइल बोर्ड ने उसकी जमानत रद्द कर दी और उसे 5 जून तक बाल सुधार गृह भेज दिया। येरवडा पुलिस स्टेशन में उसके खिलाफ धारा 304 और धारा 185 के तहत केस दर्ज किया गया है।
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पुणे पुलिस ने इस मामले में अब तक 5 लोगों को गिरफ्तार किया है। नाबालिग आरोपी के पिता विशाल अग्रवाल, पुणे के कोजी रेस्टोरेंट के मालिक का बेटा नमन प्रह्लाद भूतड़ा, रेस्टोरेंट का मैनेजर सचिन काटकर, ब्लैक क्लब होटल का मैनेजर संदीप सांगले और होटल का स्टाफ कर्मी जयेश बोनकर शामिल हैं। इन सभी पर विभिन्न आरोप लगाए गए हैं, जैसे बिना ड्राइविंग लाइसेंस के कार चलाने की अनुमति देना, शराब पीने और पार्टी करने की अनुमति देना और रेस्टोरेंट और होटल में शराब सर्व करना। इन सभी को 24 मई तक पुलिस कस्टडी में रखा गया है।
नाबालिग आरोपी के मामले में, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत सुनवाई की जाएगी। इस कानून के अनुसार, 18 साल से कम उम्र के आरोपी को बाल सुधार गृह में भेजा जाता है, और सजा के तौर पर उसे सुधारात्मक सेवाओं का पालन करना पड़ता है। हालांकि, गंभीर मामलों में, जुवेनाइल बोर्ड यह तय कर सकता है कि आरोपी को वयस्क के तौर पर मुकदमा चलाया जाए या नहीं। अगर बोर्ड यह तय करता है कि आरोपी को वयस्क के तौर पर मुकदमा चलाया जाए, तो उसे IPC की धारा 304 और 185 के तहत सजा दी जा सकती है।
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इस हादसे के बाद, पीड़ितों के परिवार को न्याय दिलाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। सबसे पहले, नाबालिग आरोपी की जमानत रद्द कर उसे बाल सुधार गृह भेजा गया है। इसके अलावा, अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि पुलिस मामले की गंभीरता को समझते हुए कार्रवाई कर रही है। रेस्टोरेंट और होटल को सील कर दिया गया है, जहां नाबालिग को शराब परोसी गई थी।
पुणे पोर्श हादसे ने एक बार फिर से सड़क सुरक्षा और नशे में ड्राइविंग के खतरों को उजागर किया है। इस मामले में नाबालिग आरोपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई और अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी ने यह सुनिश्चित किया है कि न्याय की प्रक्रिया में कोई बाधा न आए। हालांकि, यह देखना अभी बाकी है कि न्यायालय इस मामले में क्या निर्णय लेता है और पीड़ितों के परिवारों को न्याय कैसे मिलता है। लेकिन यह स्पष्ट है कि प्रशासन और कानून व्यवस्था इस मामले को गंभीरता से ले रही है और उचित न्याय दिलाने के प्रयास कर रही है।