मणिपुर के अलगाववादी संगठन UNLF के साथ हाल ही में हुआ शांति समझौता, जिसमें संगठन ने अपने कैडर्स और हथियारों के साथ सरेंडर कर दिया, ने देश भर में चर्चा का केंद्र बना दिया है। इसमें कई पहलुओं को समझाना जरूरी है, ताकि लोग इस घटना को सही संदर्भ में समझ सकें।
सूत्रों के मुताबिक, मणिपुर में 3 मई से चल रही जातियों के बीच हिंसा ने राज्य में गंभीर स्थिति पैदा की थी। इस हिंसा के असर से बचाव के लिए केंद्र सरकार ने 13 नवंबर को 9 उग्रवादी संगठनों पर 5 साल का बैन लगाया था, जिसमें UNLF भी शामिल था।
केंद्र सरकार ने अपनी भूमिका में बदलाव करते हुए उग्रवादी संगठनों पर लगे बैन को एक सख्त स्टैंस के रूप में पेश किया था, जिसमें संगठनों के सदस्यों को अरेस्ट करने का भी जरिया था। इसका मकसद हिंसा को कम करना और स्थिति में सुधार लाना था।
केंद्र सरकार ने हंटर को एक हाथ में और बातचीत की प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए दूसरे हाथ में थामा। इसके जरिए UNLF जैसे संगठनों से मुद्दों को सुलझाने की कोशिश की गई।
इस प्रयास का एक पॉजिटिव परिणाम UNLF के साथ हुआ समझौता है। UNLF ने दिल्ली में गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ स्थाई शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए और अपने कैडर्स और हथियारों को सरेंडर कर दिया।
मणिपुर के सीएम एन. बीरेन सिंह ने भी इस समझौते को सराहा और बताया कि इसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कुशल नेतृत्व का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने इसे मणिपुर के लिए एक नए युग की शुरुआत माना और उम्मीद जताई कि इससे राज्य में तरक्की और शांति का माहौल बनेगा।
इस पूरे समझौते से स्पष्ट होता है कि बातचीत का माध्यम सही हो सकता है और संगठनों को भी समझाया जा सकता है कि हिंसा की जगह वार्ता और सहमति का मार्ग चुनना चाहिए। इससे राज्य में शांति और सुरक्षा की स्थिति में सुधार हो सकता है।