लोकसभा चुनाव 2024 के तहत 5 फेज की वोटिंग हो चुकी है। इस बीच फॉर्म-17C को सार्वजनिक करने की मांग ने जोर पकड़ लिया है। एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनाव आयोग से पोलिंग बूथ वाइज वोट प्रतिशत का डेटा सार्वजनिक करने की मांग की है। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने चुनाव आयोग से इस मुद्दे पर जवाब मांगा।
फॉर्म-17C का महत्व
चुनाव प्रक्रिया के तहत फॉर्म-17C का महत्वपूर्ण स्थान है। यह फॉर्म वोटिंग से संबंधित डेटा को संकलित करता है और इसमें पोलिंग बूथ पर डाले गए वोटों का विस्तृत लेखा-जोखा होता है। चुनाव नियम 1961 के तहत, यह फॉर्म दो हिस्सों में विभाजित होता है। पहले हिस्से में पोलिंग बूथ का नाम, नंबर, EVM का नंबर और वोटरों की संख्या जैसी जानकारी होती है। दूसरे हिस्से में वोटिंग खत्म होने के बाद की जानकारी होती है, जिसमें कुल वोटों की संख्या और मतदान प्रतिशत शामिल होता है।
चुनाव आयोग का पक्ष और संभावित नुकसान
चुनाव आयोग के वकील अमित शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में फॉर्म-17C को सार्वजनिक करने के संभावित नुकसान बताए। उन्होंने कहा कि फॉर्म को सार्वजनिक करने से मतगणना प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा, वोटरों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है और आंकड़ों से छेड़छाड़ होने की संभावना भी बढ़ सकती है। वर्तमान में, यह फॉर्म केवल पोलिंग बूथ के एजेंटों को उपलब्ध कराया जाता है। अगर इसे वेबसाइट पर अपलोड किया गया तो इससे चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न लग सकता है।
फॉर्म-17C को सार्वजनिक करने के पक्ष में तर्क
फॉर्म-17C को सार्वजनिक करने के पक्ष में तर्क दिया जा रहा है कि इससे चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता बढ़ेगी और जनता का चुनाव प्रक्रिया पर विश्वास और मजबूत होगा। एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) का मानना है कि अगर पोलिंग बूथ वाइज वोट प्रतिशत का डेटा सार्वजनिक किया जाता है, तो इससे किसी भी तरह की चुनावी गड़बड़ी को रोका जा सकेगा और लोकतंत्र की नींव को और मजबूत किया जा सकेगा।
विवाद और आगे की राह
फॉर्म-17C को सार्वजनिक करने को लेकर उठे विवाद ने चुनाव प्रक्रिया और उसकी पारदर्शिता पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के सामने यह चुनौती है कि वे कैसे इस मुद्दे का समाधान करें जिससे जनता का चुनाव प्रक्रिया पर विश्वास बना रहे और चुनावी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता भी बनी रहे।
फॉर्म-17C को सार्वजनिक करने की मांग और इससे जुड़े विवाद ने भारतीय लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ी है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग इस मुद्दे का समाधान कैसे निकालते हैं। पारदर्शिता और विश्वास बनाए रखने के लिए जरूरी है कि चुनाव प्रक्रिया को अधिकतम संभव तरीके से खुला और निष्पक्ष बनाया जाए। फॉर्म-17C को सार्वजनिक करने के पक्ष और विपक्ष में दिए गए तर्कों को ध्यान में रखते हुए, एक संतुलित निर्णय लेना आवश्यक है जिससे लोकतंत्र की जड़ों को और मजबूत किया जा सके।