एम्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में रिजर्व एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल करने में भी बेहतरीन नतीजे नहीं मिल रहे हैं, और यह भी सिर्फ 20% मरीजों के इलाज में ही सफल हो रहा है। यह रिसर्व एंटीबायोटिक्स उन मरीजों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं जो गंभीर इंफेक्शन से पीड़ित हैं, और इससे जान की खतरा हो सकता है।
एम्स के नए एनालिसिस के अनुसार, भारत के आईसीयू में भर्ती मरीजों में कई इंफेक्शनों के खिलाफ एंटीबायोटिक्स दवाएं कारगर नहीं हो रही हैं। इसका मतलब है कि इन मरीजों की जान को बचाने के लिए उपयुक्त दवाएं उपलब्ध नहीं हैं। इस स्थिति में, इन मरीजों के लिए जीवन-threatening स्थिति हो सकती है।
रिजर्व एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल में गड़बड़ी के चलते इसे एक खतरनाक समस्या के रूप में देखा जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा रिजर्व कैटेगरी में रखी गई दवा भी अब कई बार कारगर नहीं है, जिससे यह समस्या और भी बढ़ गई है। रिजर्व कैटेगरी की दवाओं का इस्तेमाल विशेष मौकों पर ही किया जाता है और इसका मतलब है कि इसे सावधानीपूर्वक और विवेकपूर्णता से ही इस्तेमाल किया जा सकता है।
आईसीयू में भर्ती मरीजों में होने वाले इंफेक्शन को नियंत्रित करने के लिए एम्स ने एक नेटवर्क तैयार किया है, लेकिन सबसे असरदार एंटीबायोटिक्स का केवल 20% में ही सफल इस्तेमाल हो रहा है। यह सामग्री चुनने की कमी और गलत तरीके से उपयोग के कारण हो सकता है कि इसका इस्तेमाल सही रूप से नहीं हो रहा है और इसका परिणामस्वरूप मरीजों को सही इलाज नहीं मिल पा रहा है।
इस समय, एम्स ट्रॉमा सेंटर के चीफ डॉ. कामरान फारुकी द्वारा की गई निगरानी के अनुसार, दक्षिण के अस्पतालों की हालत बेहतर हो रही है। इंफेक्शन कंट्रोल पॉलिसी को पूरे देश में लागू करने के लिए डॉ पूर्वा माथुर की निगरानी में सभी अस्पतालों को जोड़ा जा रहा है, ताकि सभी अस्पताल एक ही मानक पर काम कर सकें। दक्षिण के राज्यों में उत्तर भारत की तुलना में इंफेक्शन कम पाया जा रहा है और प्राइवेट अस्पतालों का इंफेक्शन कंट्रोल सरकारी अस्पतालों से बेहतर है।
अस्पतालों के आईसीयू में, मरीजों को लगाए जाने वाले कैथेटर, कैन्युला, और दूसरे डिवाइस में कई बैक्टीरिया और जीवाणु पनपते रहते हैं, जिससे इंफेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती है। इससे मरीज जो पहले से बीमार और कमजोर इम्युनिटी वाले हैं, उन्हें इंफेक्शन से बचाव करना मुश्किल हो जाता है और वे जीवन-threatening स्थिति में पहुंच सकते हैं।
एम्स ट्रामा सेंटर के चीफ डॉ कामरान फारुकी के अनुसार, ऐसे मरीजों की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है जो लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रहते हैं, जिन्हें लंबे समय तक कैन्युला, कैथेटर या यूरिन बैग लगे रहते हैं। इनमें खतरनाक इंफेक्शनस के पनपने का खतरा होता है, जो उन्हें अधिक कठिनाई में डाल सकता है।
इस पूरे संदेश से स्पष्ट होता है कि भारत में इंफेक्शन कंट्रोल की स्थिति सुधारने की आवश्यकता है, और सभी अस्पतालों को सावधानीपूर्वक इंफेक्शन कंट्रोल के मानकों का पालन करना चाहिए। यह भी दिखाता है कि रिजर्व एंटीबायोटिक्स का सही और युक्तिपूर्ण इस्तेमाल होना चाहिए, ताकि इनका सही समय पर उपयोग हो और उनकी सामग्री चुनने में गलतियों से बचा जा सके।