भारत और मालदीव के बीच संबंधों का विकास और साथ ही उनके बीच हाल ही में हुए तनाव के बारे में विस्तार से चर्चा करने से पहले, हमें दोनों देशों के बीच के अहम बातचीत के बारे में बात करना चाहिए।
भारत और मालदीव के बीच संबंधों का इतिहास गहरा है और यह दोनों देश आपस में विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं। वित्तीय सहायता, शिक्षा, स्वास्थ्य, सैन्य सहयोग और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में भारत ने मालदीव को सहायता प्रदान की है। इसके अलावा, मालदीव को समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में भी भारतीय सहायता मिली है। यह साझा साहसी उपायों के माध्यम से दोनों देशों के बीच के संबंधों को मजबूत किया गया है।
हालांकि, हाल ही में हुए कुछ घटनाओं ने दिखाया कि भारत और मालदीव के संबंधों में चुनौतियां भी हैं। मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के पदभार संभालने के बाद, चीन के समर्थन में उनकी नीति में कुछ परिवर्तन आए हैं। इसके परिणामस्वरूप, भारत और मालदीव के बीच कुछ विवाद उठने लगे हैं। इसका सीधा परिणाम यह है कि भारत ने अपने सैन्य कर्मियों को मालदीव से वापस बुला लिया है। इससे पहले भी भारत ने अपने अधिकतर सैन्य कर्मियों को मालदीव से वापस बुला लिया था।
इस परिस्थिति में, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और मालदीव के विदेश मंत्री मूसा जमीर के बीच हुए संवाद का महत्वपूर्ण होना चाहिए। इस मुलाकात के दौरान, भारत ने साफ किया कि उसकी नीती हमेशा ‘पड़ोस प्रथम’ की रही है और दोनों देशों के बीच सहयोग के बढ़ते संबंधों का समर्थन किया। उन्होंने दोनों देशों के बीच आपसी हित और पारस्परिक संवेदनशीलता के महत्व को भी जोर दिया।
भारत ने हमेशा ही मालदीव को विकास में सहायता प्रदान की है, और विदेश मंत्री जयशंकर ने भी इसे बयान किया। उन्होंने बताया कि भारत मालदीव को वित्तीय सहायता, परियोजनाओं के माध्यम से उपकरण, क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण के माध्यम से सहायता प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत ने मालदीव के विकास में सबसे पहले आगे बढ़कर मदद की है।
इस संवाद के माध्यम से भारत ने अपने संबंधों का महत्व और अपने संबंधों के स्थायित्व को दोबारा साबित किया है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत और मालदीव के बीच के संबंधों की मजबूती और सहयोग की भावना अब भी सबल है। इससे आगे भी यह उम्मीद की जा सकती है कि दोनों देश आपसी सहयोग और समर्थन के माध्यम से एक-दूसरे के साथ गहरी दोस्ती और सम्बंध बनाए रखेंगे।