पकड़ौआ विवाह, जिसे कई जगहों पर “जबरिया जोड़ी” भी कहा जाता है, एक सामाजिक समस्या है जिसमें किसी नौजवान को जबरदस्ती शादी के लिए बाध्य किया जाता है, अक्सर बिना उनकी सहमति के। यह अवैध और अनैतिक है, और ऐसी प्रथाओं को समाज में बदलने की कड़ी आवश्यकता है।
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पटना हाई कोर्ट के जस्टिस पीबी बज्रन्थी और जस्टिस अरुण कुमार झा ने एक ऐसे मामले की सुनवाई की, जिसमें एक युवक को पकड़ौआ विवाह कराया गया था। यह मामला नेवादा के रहने वाले रविकांत का था, जिन्होंने 10 साल पहले इस प्रकार की शादी की गई थी। पटना हाई कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि पकड़ुआ विवाह मान्य नहीं है और हिंदू विवाह तब तक मान्य नहीं होगा जब तक दूल्हा-दुल्हन दोनों राजी नहीं होंगे।
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‘पकड़ौआ विवाह’ का मतलब है किसी नौजवान को उसकी सहमति के बिना जबरदस्ती शादी कराना। यह प्रथा कई स्थानों पर विद्यमान है, जो समाज में नैतिकता और मानवाधिकारों के खिलाफ है।
पूर्वांचल और बिहार के कई क्षेत्रों में पहले ऐसी प्रथा थी, जिसमें नौजवान लड़कों को किडनैप करके उनकी जबरदस्ती शादी कराई जाती थी। हालांकि, समय के साथ इस प्रथा में कमी हुई है, लेकिन इसका पूरी तरह से समाप्त नहीं होना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
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पटना हाई कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्टता से यह बताया है कि ‘पकड़ौआ विवाह’ मान्य नहीं है और हिंदू विवाह को सही माना जाएगा तब तक जब तक दूल्हा-दुल्हन दोनों राजी नहीं होंगे। यह फैसला हिंदू धर्म के रीति-रिवाज के मुताबिक है, जो विवाह को पवित्र अग्नि के सात फेरों के साथ मान्यता प्रदान करता है।
इस फैसले से सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की सुरक्षा के प्रति एक सकारात्मक कदम उठाया गया है, और यह सुनिश्चित करता है कि किसी को उसकी सहमति के बिना शादी करने का प्रयास किया नहीं जाएगा। इससे आने वाले समय में इस प्रथा की समाप्ति की दिशा में कदम बढ़ सकता है।