किसान आंदोलन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय राजनीति को ध्यानाकर्षित किया है, खासकर जब चुनावी माहौल में यह घटनाएं घटित हो रही हैं। दिल्ली के बाद किसानों का अम्बाला के पास आयोजित किया गया कूच और उसमें हुई झड़प मामले को और भी गंभीर बना दिया है। इसके परिणामस्वरूप, सरकार को किसानों के मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।
चुनाव से पहले जब भाजपा की ध्यान आंदोलन के प्रति कम दिख रही है, तो कांग्रेस ने किसानों को ‘गारंटी’ देने का वादा किया है। इस समय, कांग्रेस ने हर किसान को फसलों पर स्वामीनाथन कमीशन के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी देने का ऐलान किया है। इससे स्पष्ट होता है कि किसानों की मुख्य आवाज को कांग्रेस ने सुन लिया है और उनकी मांगों को ध्यान में रखा गया है।
विपक्षी पक्षों ने भी इस मुद्दे को उठाया है और इसे सरकार के खिलाफ उपयोग किया है। इस बात से स्पष्ट होता है कि आंदोलन ने राजनीतिक माहौल को प्रभावित किया है और अब यह चुनावी मुद्दा बन चुका है।
केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कांग्रेस के इस ऐलान का उल्लंघन किया और कहा कि कांग्रेस के 60 साल के शासन काल में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कोई गारंटी नहीं दी गई थी। इसके बजाय, मोदी सरकार ने किसानों के हित में कई कदम उठाए हैं, जैसे कि MSP की बढ़ोतरी करना।
इस संदर्भ में, यह सोचना महत्वपूर्ण है कि क्यों भाजपा किसान आंदोलन के प्रति ज्यादा टेंशन में नहीं है। एक अभ्यास के अनुसार, किसानों के बड़े राज्यों में ज्यादातर प्रतिस्पर्धी दलों का प्रभाव नहीं होता है, जैसे कि पंजाब और हरियाणा। इसलिए, भाजपा के लिए इन राज्यों में चुनावी प्रतिस्पर्धा थोड़ी कम होती है।
इस बीच, कांग्रेस ने किसानों को अपने बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जो चुनाव में भाजपा के लिए एक चुनौती बन सकता है। इससे खासकर उन राज्यों में, जहां किसानों की संख्या अधिक है और उनकी आवाज की सुनवाई ज्यादा होती है।
अब, चुनाव के परिणाम देखना बचा है कि इस आंदोलन का किस प्रकार का प्रभाव होता है और किसानों की मांगों का संघर्ष किसके हित में निकलता है। इस संदर्भ में, राजनीतिक दलों को किसानों की मांगों को समझने और उनके हित में कदम उठाने की जरूरत है।