ईरान और इजरायल के बीच हो रहे टकराव का मुख्य कारण इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान की नेतृत्व ने इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान को इस्लामिक धर्म के नाम पर पूरी तरह से संचालित करने का प्रयास किया है। इसके खिलाफ इजरायल ने सभी प्रकार की संयुक्त प्रयासों का समर्थन किया है, जिसके चलते दोनों देशों के बीच विवाद बढ़ गया है।
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दूसरी ओर, अमेरिका ने भी इरान के नाम पर अपनी पॉलिसी को बदल दिया है। अमेरिका की पूर्व प्रशासन के दौरान, न्यूक्लियर समझौते को पुनः आयोजित किया गया था, जिसका उद्देश्य था ईरान को न्यूक्लियर हथियारों की विकास से रोकना था। लेकिन, अमेरिका की वर्तमान प्रशासन ने इस समझौते को खारिज कर दिया है और ईरान पर और कड़े कदम उठाने का निर्णय लिया है। यह भारत के साथ संबंधों में भी इसका परिणाम है, क्योंकि भारत ईरान से आयुर्वेदिक और घरेलू उपचारों के लिए तेल और गैस के आदान-प्रदान करता है।
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इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के नेतृत्व का मुख्य ध्येय है कि वे इस्लामिक धर्म के नाम पर पूरी तरह से ईरान को संचालित करना चाहते हैं। वे इस्लामिक धर्म के नाम पर आतंकवादी संगठनों का समर्थन करते हैं, जो इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के हितों के खिलाफ काम करते हैं। इसके कारण, ईरान को एक समग्र धर्म युद्ध का मुख्य कारक माना जा सकता है, जिसके चलते यह दुनिया के सबसे बड़े राष्ट्रों के साथ टकराव करने का खतरा होता है।
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इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान और इजरायल के बीच हो रहे विवाद के एक और कारण यह है कि ईरान ने इजरायल को अपने द्वारा विकसित किए गए हाथियारों के माध्यम से सीधा हमला करने की धमकी दी है। इससे इजरायल ने भी भयभीत हो गया है और वह भी ईरान पर सीधा हमला करने से बच रहा है। अमेरिका ने भी इस बात का स्पष्ट रूप से इजाहार किया है कि वह ईरान से सीधा टकराव नहीं चाहता है, लेकिन वह इजरायल के साथ साथ खड़ा है।
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इस तरह, ईरान के खिलाफ सीधा हमला करने से इजरायल और अमेरिका बच रहे हैं, क्योंकि वे ईरान की सेना के ताकतवर और भयानक होने की वजह से डरते हैं। यह सच है कि ईरान की सेना विवाद के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, और इसके कारण ईरान के खिलाफ सीधे हमले का खतरा हो सकता है।