इसरो ने फ्यूल सेल का सफल परीक्षण है। इस परीक्षण का लाभ इसरो को भविष्य के मिशनों में मिलेगा। बता दें कि इसके जरिए स्पेस में बिजली और पानी की व्यवस्था आसानी से की जा सकेगी। साथ ही एक अच्छी बात यह भी है कि फ्यूल सेल किसी तरह का उत्सर्जन नहीं करता है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने शुक्रवार को बताया कि उसने पारंपरिक बैटरी सेल की तुलना में अधिक कुशल और कम लागत वाले नए प्रकार के सेल यानी फ्यूल सेल का परीक्षण किया है। राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी ने बताया कि उसने ‘10 AH सिलिकॉन-ग्रेफाइट-एनोड’ पर आधारित उच्च ऊर्जा घनत्व वाले ली-आयन सेल को वर्तमान में उपयोग किए जा रहे पारंपरिक सेल की तुलना में कम वजन और कम लागत वाले विकल्प के रूप में तैयार किया है। अंतरिक्ष एजेंसी ने एक बयान में कहा कि एक जनवरी को पीएसएलवी-सी58 के प्रक्षेपण के समय बैटरी के रूप में सेल का उड़ान परीक्षण भी सफलतापूर्वक पूरा किया गया।
क्या है फ्यूल सेल
ISRO ने कहा, “इस प्रदर्शन के माध्यम से प्राप्त आत्मविश्वास के आधार पर, इन सेल को अगले परिचालन मिशनों में उपयोग करने के लिए रेडी किया गया है, जिनमें 35-40% बैटरी द्रव्यमान सेव की उम्मीद है। ” ISRO ने कहा कि टेलीमेट्री के माध्यम से बैटरी के ‘ऑन-ऑर्बिट वोल्टेज’, करंट और टेम्प्रेचर कीमतों को प्राप्त किया गया और यह अनुमानों के अनुसार रहा। ANOD सामग्री के रूप में 100 % शुद्ध ग्रेफाइट के उपयोग वाले पारंपरिक ‘ली-आयन सेल’ की तुलना में यह सेल एनोड सामग्री के रूप में मिश्रित सी-ग्रेफाइट का उपयोग करता है।
फ्यूल सेल की खासियत
बता दें कि फ्यूल सेल तकनीक के सफल परीक्षण का इसरो को भविष्य में लाभ होगा। यह तकनीक फ्यूचर मिशन और डाटा इकट्ठा करने के लिहाज से बेहद अहम है। इससे अंतरिक्ष में बिजली और पानी बन सकेगा। इस फ्यूल सेल को स्पेस स्टेशन के लिए बनाया गया है। दरअसल स्पेस स्टेशन अंतरिक्ष में मौजूद है। यह एक प्रयोगशाला है जहां इंसान रहते हैं। अंतरिक्ष स्टेशन पर स्पेस में रहने के दौरान इंसान को पानी और बिजली की आवश्यकता होती है। फ्यूल सेल के सफल परीक्षण के बाद अब अंतरिक्ष में बिजली और पानी की व्यवस्था की जा सकेगी। बता दें कि फ्यूल सेल की टेस्टिंग के दौरान हाई प्रेशर वेसल्स में स्टोर की गई हाईड्रोजन और ऑक्सीजन के गैसों की मदद से 180 वॉट की बिजली पैदा की गई।
इसरो ने कही ये बात
फ्यूल सेल के सफल परीक्षण को लेकर इसरो ने कहा कि इसकी मदद से हाईड्रोजन और ऑक्सीजन की मदद से बिजली पैदा की जा सकेगी। साथ ही इसकी मदद से स्पेस में शुद्ध पानी की व्यवस्था की जा सकेगी। इस फ्यूल सेल से बाई प्रोडक्ट के रूप में सिर्फ पानी ही निकलता है। इससे किसी तरह का हानिकारक गैस नहीं निकलता। दरअसल फ्यूल सेल से उत्सर्जन नहीं करता है। अगर सबकुछ ठीक रहा तो भविष्य में इस तकनीक का इस्तेमाल चार पहिया वाहनों में भी की जा सकेगी। हालांकि इसके लिए फ्यूल सेल को सस्ता और इस्तेमाल के लायक तैयार करना होगा।