महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पिछले कुछ वर्षों में कई महत्वपूर्ण बदलावों का सामना किया है। बावजूद इसके कि उद्धव ठाकरे की पार्टी ने लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया है, वे अभी भी महाराष्ट्र की राजनीति में पूर्णतः अपनी पुरानी पकड़ बनाने में सफल नहीं हो पाए हैं। आइए, हम जानते हैं कि आखिर क्यों उद्धव ठाकरे बाजीगर नहीं बन पाए।
सीट बंटवारे में संतुलन
![](https://sabsetejkhabar.com/wp-content/uploads/2024/06/image_2024_06_05T09_59_37_234Z-1024x576.png)
लोकसभा चुनावों के लिए सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे में शिवसेना (यूबीटी) को महाराष्ट्र की 48 में से 21 सीटें मिली थीं। हालांकि, उद्धव ठाकरे की पार्टी ने मुंबई की चार में से तीन सीटें जीत लीं, लेकिन रायगढ़, रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग, ठाणे और कल्याण जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। यह हार बताती है कि उद्धव ठाकरे की पार्टी अब भी राज्य के कुछ क्षेत्रों में पुरानी पकड़ नहीं बना पाई है।
शिवसेना का मेकओवर
![](https://sabsetejkhabar.com/wp-content/uploads/2024/06/image_2024_06_05T10_00_45_951Z.png)
उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना का एक आक्रामक हिंदुत्ववादी पार्टी से उदारवादी पार्टी में बदलना उनके लिए एक बड़ा चैलेंज था। उन्होंने मुसलमानों, दलितों और गैर-महाराष्ट्रियन लोगों को लुभाने का प्रयास किया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में अपने ढाई साल के कार्यकाल के दौरान, उद्धव ठाकरे ने ‘घर से काम करने वाले’ मुख्यमंत्री के तौर पर आलोचनाओं का सामना किया। लेकिन कोविड-19 महामारी के दौरान फेसबुक पर लाइव आकर जनता से जुड़े रहना उनके पक्ष में गया।
बीजेपी से अलग होकर क्या खोया- क्या पाया?
बीजेपी से अलग होकर उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के साथ गठबंधन किया, जिससे महाविकास आघाड़ी (MVA) की सरकार बनी। इस गठबंधन ने महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़ लाया और ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया। हालांकि, जून 2022 में एकनाथ शिंदे के बगावत के बाद ठाकरे की सरकार गिर गई। इससे उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी को बड़ा झटका लगा।
जनता से संपर्क
![](https://sabsetejkhabar.com/wp-content/uploads/2024/06/image_2024_06_05T09_51_33_996Z-1-1024x576.png)
उद्धव ठाकरे ने लोकसभा चुनावों के दौरान पूरे राज्य का दौरा किया और उनकी रैलियों में भारी भीड़ उमड़ी। इससे यह साबित होता है कि जनता के बीच अभी भी उनकी लोकप्रियता बरकरार है। हालांकि, सिर्फ चुनावी रैलियों में भीड़ जुटाना ही पर्याप्त नहीं है। पार्टी को चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए मजबूत संगठनात्मक ढांचा और रणनीतिक सोच की जरूरत होती है।
महाविकास आघाड़ी की स्थिति
महाविकास आघाड़ी (MVA) ने महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 30 पर जीत हासिल की। वर्ष 2019 में महज एक सीट जीतने वाली कांग्रेस ने इस बार 13 सीटें जीतीं, जबकि शिवसेना (यूबीटी) को नौ और NCP(SP) को 8 सीटें मिलीं। यह प्रदर्शन उद्धव ठाकरे के लिए संतोषजनक है, लेकिन अभी भी उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी पुरानी पकड़ मजबूत करने के लिए और मेहनत करनी होगी।
शिवसेना में दो फाड़
![](https://sabsetejkhabar.com/wp-content/uploads/2024/06/image_2024_06_05T09_56_17_420Z-1024x640.png)
शिवसेना के टूटने के बाद पार्टी दो गुटों में बंट गई। उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना (यूबीटी) और एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना। दोनों ही गुट खुद को असली शिवसेना होने का दावा करते हैं। चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट में यह मामला गया और आखिरकार, 17 फरवरी 2023 को शिवसेना (यूबीटी) का आधिकारिक तौर पर गठन हुआ।
चुनौतीपूर्ण भविष्य
उद्धव ठाकरे के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस साल के अंत में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना होगा। उन्हें अपनी पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करना होगा और जनता के बीच अपनी पकड़ को और मजबूत करना होगा। इसके अलावा, महाविकास आघाड़ी के भीतर समन्वय और सहयोग को बनाए रखना भी एक महत्वपूर्ण कार्य होगा।
महाराष्ट्र में 9 सीटें जीतने के बाद भी उद्धव ठाकरे बाजीगर नहीं बन पाए हैं। हालांकि, उन्होंने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अपनी पकड़ साबित की है, लेकिन अभी भी उनके सामने कई चुनौतियाँ हैं। उन्हें अपनी पार्टी की पुरानी रौ में वापस लाने और महाराष्ट्र की राजनीति में मजबूत पकड़ बनाने के लिए संगठनात्मक ढांचे को और मजबूत करना होगा और जनता के बीच अपनी लोकप्रियता को बढ़ाना होगा। भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए उद्धव ठाकरे को सशक्त नेतृत्व और रणनीतिक सोच की आवश्यकता है।